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चतुर्दश अध्याय
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मछलियों को बचाकर भगवान महावीर की वाणी सफल करते ? यह सब कुछ नहीं हुआ, इस से सिद्ध होता है कि दान देना तथा जीवों को बचाना पाप है । इस का समाधान इस प्रकार है । भगवान महावीर को जिस समय केवलज्ञान उत्पन्न हुना, उस समय प्रभु जंगल में थे तथा सन्ध्या का समय था, भगवान महावीर ने केवलज्ञान होते ही वाणी फरमाई । तव उस समय मानुष - मानुषी, तिर्यञ्च, तिर्यञ्ची नहीं थे । इसलिए किसी ने चारित्र रूप धर्म को अंगीकार नहीं किया । केवल देवी, देवता थे, वे प्रत्याख्यान नहीं कर सकते थे । इस दृष्टि से भगवान की वह वाणी निष्फल मानी जाती है न कि दान, पुण्य या जीव-रक्षा की दृष्टि से । इस से जीव - . रक्षा या दान देना निषिद्ध नहीं हो सकता । यदि यह मान लिया जाए और यह समझ लिया जाए कि जो काम देवता नहीं करते तो मनुष्य को भी वह काम निषिद्ध है, पाप है । तो देवता साधुत्रों को ग्राहार, पानी, वस्त्र, पात्र आदि भी नहीं देते, दीक्षा भी नहीं - लेते । इसलिए मनुष्य को भी साधु को आहार ★ होना पाप मानना पड़ेगा और यदि साधु को
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आदि देना, दीक्षित
देव ग्राहार आदि
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नहीं देते तब भी मनुष्य के लिए साधु को ग्राहार आदि देना, पाप नहीं है बल्कि धर्म-प्रद है तो किसो मरते जीव को बचाना तथा दीन, दुःखों को दान देना भी पाप कैसे हो सकता है ?
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तेरहपन्थ का विश्वास है कि किसी मरते हुए जीव को बचाना पाप है । उस का कहना है कि किसी मरते हुए जीव को बचाने या किसी प्यासे को पानी पिलाने में या किसी को कष्ट से मुक्त करने में अग्नि- पानी आदि के असंख्य स्थावर जीवों की हिंसा होती है। इसलिए किसी मरते हुए जीव को बचाना, पानी में डूबते हुए या आग में जलते हुए को निकालना या किसी प्यासे को पानी