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चतुर्दश अध्याय ...
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तया जीवों की रक्षा के निमित्त ही हुई है। इस बात को जैनेतर '.. विद्वान भी सहर्ष स्वीकार करते हैं । इतिहासज्ञों का भी यही कथन ,
है कि जैन-धर्म संसार में दुःख पाते हुए तथा मारे जाते हुए जीवों .... . जी रक्षा के लिए ही संसार के सामने आया है। जैन-शास्त्रों में
मरते हुए जीवों को बचाने के लिए आदर्श रूप में अनेकों उदाहरण ... ... मिलते हैं । भगवान अरिष्टनेमि ने,मारे जाने के लिए बन्द किए हुए ..
पशुओं को बाड़े में से छुड़ाया। भगवान पार्श्वनाथ ने आग में जलते
हुए नाग नागिन को बचाया । भगवान महावीर ने, यज्ञ में होने . वाली पंशु-हिंसा का ज़बर्दस्त विरोध करके उन जीवों का संरक्षण किया। इसके इलावा, भगवान महावीर ने तेजोलेश्या से जलते हुए . गोशालक को बचाया था। यदि मरते हुए जीव को बचाना पाप होता तो तीर्थंकर भगवान स्वयं यह पाप क्यों करते ? .......
उक्त उदाहरणों के सम्बन्ध में तेरहपन्थी. लोग बड़ी विचित्र वात बनाते हैं । भगवान अरिष्टनेमि के लिए कहते हैं कि उनःजीवों
की हिंसा भगवान अरिष्टनेमि के निमित्त हो रही थी। इसी से " भगवान अरिष्टनेमि ने उन जीवों की हिंसा का पाप अपने लिए ... माना और उन्होंने उस पाप को टाला । कितना आश्चर्य है कि इन .. ... जीवों के पाप की तो भगवान अरिष्टनेमि को इतनी चिन्ता हो .. गई, पर हिवाह में पानी के सैंकड़ों घड़े अपने ऊपर डलवा लिए,उन ...
· में स्थित असंख्य जीवों के पाप की भगवान को कोई चिन्ता नहीं ... हुई । वस्तुतः भगवान ने केवल अपने को पाप से बचाने के लिए ही..
ऐसा नहीं किया,वल्कि उन जीवों के संरक्षण का उन्हें विशेष ध्यान था। यदि अपने को पाप से बचाना ही उनको इष्ट होता तो "ये जोव मेरे निमित्त मारे जाएंगे' इतना बोध होने पर ही वे वा: