________________
૨
प्रश्नों के उत्तर
1
पालन करने में असफल रहता हूं। इसलिए कल सूर्योदय होने पर अपने मित्र, सम्बन्धी तथा सामाजिक लोगों को बुलाऊंगा, उन्हें व हुत सा भोजन, वस्त्रं यादि से सम्मानित करके तथा उनसे सम्मति लेकर पुत्र पर सव उत्तरदायित्व डाल कर तथा पुत्र को 'पुत्र ! जिस प्रकार में नागरिक लोगों के लिए, राजा आदि के लिए, कुटुम्ब के लिए आधार बन कर रहता था । उसी प्रकार तुम ने भी सब के लिए श्रधार बन कर रहना" यह कह कर श्रीर पीपवशाला में जाकर भगवान महावीर से स्वीकृत धर्म की आराधना करता हुआ जीवन व्यतीत करूंगा। इस प्रकार निश्चय कर सूर्योदय के अनन्तर ग्रानन्द ने बहुत से खाने-पीने की सामग्री बनवाई और मित्र, ज्ञाति तथा नगर के लोगों को बुलाकर उनको खिलाया, पिलाया, तथा पुप्प, वस्त्र ग्रादि से उन सब का सत्कार, सम्मान किया और उन से सम्मति लेकर तथा अपने पुत्र पर अपना सारा व्यावहारिक तथा सामाजिक उत्तरदायित्व डालकर ग्रानन्द श्रावक पौषधशाला में धर्मध्यानार्थ चला जाता है ।
-
यदि श्रानन्द श्रावक का अभिग्रह साधु के सिवाय अन्य सभी को खिलाने-पिलाने या दान न देने का अभिग्रह होता तो ग्रानन्द मित्र, ज्ञाति और नगर के लोगों के लिए भोजन आदि वनवा कर उनको क्यों जिमाता ? उनका सत्कार, सम्मान क्यों करता ? तथा उन्हें वस्त्र, पुष्पादि क्यों देता ? श्रानन्द का यह कार्य उस के द्वारा रखे गए किसी आगार के अन्तर्गत भी नहीं था और राजा, गुरुजन ग्रादि के दवाव से भी उसने यह कार्य नहीं किया, उसने जो कुछ किया वह अपनी इच्छा से किया था। ग्रानन्द ने इस कार्य के लिए कोई प्रायश्चित्त भी नहीं लिया ओर तो क्या, उसने सब को भोजन यादि खिलाने का जो निश्चय किया था वह भी धर्म जाग