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'.. प्रश्नों के उत्तर पाप है । किन्तु स्थानकवासी परम्परा तरहपन्ध के इस सिद्धान्त में . विश्वास नहीं रखती है। उसका विश्वास है कि साधु की भांति । श्रावकं सुपात्र है और वह साधना द्वारा कल्याण के महामन्दिर को प्राप्त कर सकता है । . . . ....:सुपात्र और कुपात्र ये दो शब्द हैं। सुपात्र के तीन भेद हैंजघन्य; मध्यम और उत्कृष्ट । जघन्य सुपात्र सम्यक् दृष्टि है, मध्यम . . सुपात्र थावक और उत्कृष्ट सुपात्र साधु होता है। कुपानः शब्द. हिंसक, चोर, जार, वेश्या इन अर्थों का परिचायक है । यदि तेरह• पन्थ के विश्वासानुसार साधु के, सिवाय सभी कुपात्र हैं तो वे धर्म · · का उपदेश किन को देते हैं ? उत्तर स्पष्ट है, कुपात्रों को । कुपात्रों
को उपदेश देने से क्या लाभ ? पात्र ही वस्तु को धारण कर सकता है-अपात्र नहीं। जैसे सिंहनी के दूध के धारण करने को स्वर्ण कटोरा ही पात्र माना जाता है, दूसरा नहीं । जव अपात्र ही उत्तम पदार्थ को धारण नहीं कर सकता तव धर्म जैसे. सर्वोत्कृष्ट पदार्थ के लिए कुपात्र कैसे योग्य वन. सकते हैं ? श्री वीतराग. सर्वज्ञ देव द्वारा प्रणीत स्यादवाद्-मय नय, निक्षेप आदि सापेक्ष. मार्ग को समझने के लिए तो पात्र ही चाहिए। ::: '... तेरहपन्थ के सिद्धान्तानुसार इन के सव श्रावक कुपात्र हैं। कुपात्रों का अन्न,पानी: ग्रहण करने पर जीवन में सुपात्रता कैसे प्रा सकती है ? सिद्धान्त है कि जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन, जैसा पीवे पानी वैसी बोले वाणी' । इस लिए तेरहपन्थी साधु भी. कभी... सुपात्र नहीं बन सकते । कुपात्रों के वस्त्र-पात्र, अन्न-जल, मकान आदि का उपभोग करके इन में सुपात्रता का सर्वथा अभाव मानना .. पड़ेगा । दूसरी बात, साधु: होने से पहले इन के बड़े-बड़े आचार्य भी कुपात्रों की श्रेणी में ही थे। सम्भव है, इसी कुपात्रता के कारण ।