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- चतुर्दश अध्याय..
७८१. दुःख सहन कर रहा है । अतः उसका पात और रौद्र ध्यानी होना । स्वाभाविक है । किसी हिंसक या कसाई द्वारा किसी मारे जाते हुए जीव को देखो कि वह कैसा दुःख पाता है ? और किस प्रकार तड़-... पता एवं चिल्लाता हुआ मरता है ? उस का बाह्य रूप ही उस के आत और रौद्र ध्यान का स्पष्ट रूप से परिचय दे देता है । जैन- : शास्त्र कहते हैं कि जो जीवं पात और रौद्र ध्यान करता हुया . मरता है, वह हलके कर्म को भारी करता है, . मन्द रस वाले को तीव्र रस वाले करता है और अल्प स्थिति के कर्मों को महा स्थिति वाले बनाता है । अतः ऐसा नहीं समझना चाहिए कि मरता हुआ जीव अपना कर्जा चुका रहा है। कर्जा तो श्री गज सुकुमार जी ... सरोखे महापुरुष ही, जिन्होंने शान्ति से कष्ट सहन किया, चुकाते हैं । परवशता से दुःखी हो कर मरने वाले जीव कर्जा नहीं चुकाते,
वे तो अधिक कर्जा कर लेते हैं । कसाई द्वारा जो बकरा मारा - जा रहा है, वह अंत्यधिक दुःखी होने से आर्त, रौद्र ध्यानी होता है। . .
अंतः वह अपना कर्म-ऋण चुका नहीं रहा, बल्कि उसे और अधिके बढ़ा रहा है। इस लिए जो जीव मर रहा है, या मारा जा रहा है उसे वचांना मनुष्य को धर्म होता है। उसे बचाने में उसके कर्म रूपी ऋण चुकाने में विघ्न डाला जा रहा है ।" ऐसी भ्रान्त धारणा नहीं रखनी चाहिए । बल्कि मरने वाले जीव को बचाने सें. उसे शान्ति मिलती है। उस का पात और रौद्रध्यान हटता है दुर्ध्यान में जो कर्म-बंध होना था, शान्त दशा में उसका वह कर्म" बंध रुक जाता है । इस प्रकार जीव-रक्षा से रक्षित प्राणी का भ-.. .:. ला ही होता है, उस में उस की हानि हो जाने वाली कोई बात .. - नहीं है। यदि किसी को बचाने में, कर्म ऋण चुकाने में अन्तराय...
माना जाएगा तब तो बड़ों गड़बड़ हो जाएंगी। इस बात को एक. . :