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बचायाX | भगवान पार्श्वनाथ ने ग्राग में जलते हुए नाग-नागिन को बचाया, भगवान अरिष्ठ नेमि के दर्शन को जाते समय श्री कृष्ण वासुदेव ने एक वृद्ध पुरुष को, ईंटें उठा कर सहायता प्रदान की, भगवान ऋषभदेव ने समाज व्यवस्था कायम की, महाराजा मेघरथ ने कबूतर को बचाया, राजा श्रेणिक ने जीव-हिंसा न करने के सम्बन्ध में प्रमारीपटह ( जीव न मारने की घोषणा ) कराई, राजा प्रदेशी ने दान - शाला खुलवाई, ये सब तेरहपत्य की दृष्टि से पाप-रूप कार्य हैं । तेरहपत्य उक्त सिद्धान्तों के आधार पर उक्त सव प्रवृत्तियों को धर्म या पुण्य का कार्य स्वीकार न करके पाप रूप कार्य : मानता है ।
4.
तेरहपन्थ के उपर्युक्त सिद्धान्तों में स्थानकवासी परम्परा विश्वास नहीं रखती है । स्थानकवासी परम्परा इन सिद्धान्तों से जो मतभेद रखती है, ग्रव वह समझ लीजिए । सर्वप्रथम तेरहपन्थ के " एकेन्द्रिय से लेकर पञ्च ेन्द्रिय तक सभी जीव एक समान हैं । इसी सिद्धान्त के सम्बन्ध में विचार कर लें 1 स्थानकवासी परम्परा का विश्वास है कि त्रस और स्थावर जीव एक समान नहीं हैं। एकेन्द्रिय जीव की अपेक्षा द्वीन्द्रिय जीव का, द्वीन्द्रिय की अपेक्षा त्रोन्द्रिय, त्रीन्द्रिय की अपेक्षा चतुरिन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव की अपेक्षा पञ्च न्द्रिय जीव का ग्रधिक महत्त्व है । स्वयं तेरहपन्थी लोग एकेन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीव को एक समान बतलाते हुए भी एकेन्द्रिय आदि जीवों की अपेक्षा पञ्च ेन्द्रिय जीव को अधिक महत्त्व देते हैं तथा पंचेन्द्रिय की रक्षा और उसके हित के लिए एकेन्द्रिय
xइसके लिए तेरहपन्थी भगवान महावीर को चूका हुआ भूला हुआ (पथ भ्रष्ट ) कहते हैं ।