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_प्रश्नों के उत्तर उज्ज्वल बनाने का इससे बढ कर और कोई मार्ग नहीं है। ... . दिगम्बर परम्परा के साथ १६ बातों को लेकर जो मतभेद प्रदर्शित किया गया है, उसको लेकर भी मनमुटाव पैदा करने को . आवश्यकता नहीं है । इस मतभेद के होने पर भी एक दूसरे को । एक दूसरे से द्वप नहीं रखना चाहिए । "भिन्नचिहि लोक:' के : . सिद्धान्त को आगे रखकर मतभेद-जनित मानसिक सन्तुलन नष्ट नहीं होने देना चाहिए। इसके अतिरिक्त, मुक्ति का प्रश्न, केवलज्ञान की प्राप्ति व अप्राप्ति के प्रश्न को लेकर ग्राज के पंचम पारे में लड़ने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मोक्ष और केवल-ज्ञान
आज के इस अवसपिरणी काल के अन्त तक और उत्सर्पिणी के प्रा... रम्भिक प्रारकद्वय तक, प्राप्त होने वाला नहीं है। फिर इस को ले
कर विवाद क्यों किया जाए ? रुपया मिला नहीं, उस के बंटवारे
को लेकर मुष्टा-मुष्टि होना समझदारी की निशानी नहीं है और ... जहां तक भगवान महावीर के विवाह, सन्तान; देवदूष्य तथा उप
सर्ग आदि का प्रश्न है, और भगवान मल्लिनाथ के स्त्रीत्व का प्रश्न है, ये सव-पुराने युग की बातें हैं । आज तो हमारे सामने ये- परिस्थितियां नहीं हैं, फिर इनको वैरविरोध का माध्यम क्यों बनाया जाए ? साधुगोचरी की मर्यादा, शूद्रों को हीन मानने की वृत्ति में
सब जन्मना वर्णव्यवस्था के द्वारा पैदा हुए विकार हैं। जैन-धर्म - मनुष्यं तो क्या संसार. के सभी प्राणियों को "सब्वे जीवा वि इच्छन्ति,
जीवियं न मरिज्जियं' यह कह कर समान प्यार प्रदान करता है । किसी को भी द्वेष से देखने का निषेध करता है। अतः इन बातों
को भी वैर-विरोध और ईर्या-द्वेष का आधार नहीं बनाना : चाहिए। ... ... ... ... .. .. ... . ...... मनुष्य उद्यान में जाता है, वहां नाना रंगों के फूलों को दे