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प्रश्नों
के उत्तर. ... ...
के कारण जो वैर-विरोध की दीवार खड़ी है, इसे किसी तरह गिराया जा सकता है ?
उत्तर-उपर्युक्त प्रश्नोत्तरों में स्थानकवासी परम्परा, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा और दिगम्बर परम्परा तोनों परम्पराओं. का जो मतभेद प्रकट किया गया है, यह सत्य है कि यह भेद गिराया नहीं जा सकता, किन्तु यह भी सत्य है कि इस भेद के कारण दिलों में जो ईर्षा-द्वेष, वैर-विरोध की दीवार खड़ी हो चुकी है, इसे . अवश्य गिराया जा सकता है, संकीर्ण मानस को उदारता अर्पित की जा सकती है। यह उदारता कैसे अर्पित की जा सकती है ? यह नीचे की पंक्तियों में समझ लीजिए।
स्थानकवासी परम्परा ३२ आगम मानती है, और श्वेताम्बर मूर्तिपूजक ४५, परन्तु ३२ आगमों को तो दोनों ही स्वीकार करती हैं। दोनों ही परम्पराएं इन पागमों को प्रामाणिक रूप से देखती हैं। दोनों परम्पराएं मुखवस्त्रिका को जीवरक्षा का साधन
मानती हैं। इस में किसी का कोई मतभेद नहीं है। रही बात .. मूर्तिपूजा तथा तीर्थयात्रा आदि अन्य मान्यताओं की, इनको लेकर
भी लड़ने की तथा द्वेष करने की आवश्यकता नहीं है। जीवन में - सर्वत्र विचारों की एक-रूपता संभव भी नहीं है । कहीं न कहीं ' विचार-भिन्नता आ ही जाती है, पर उसे शान्ति से सहन करना चाहिए। और इस सिद्धान्त को मान देकर चलना चाहिए कि जी
वन के कल्याण के लिए रागद्वेष को छोड़कर वीतरागता की अ.. पेक्षा होती है। चाहे कोई स्थानकवासी है, चाहे कोई श्वेताम्बर
मूर्तिपूजक है, किन्तु प्रात्म-शुद्धि के लिए दोनों को रागद्वेष से पिण्ड : छुड़ाना होता है, वीतरागता के महापथ पर चलना होता है। यह