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प्रश्नों के उत्त
उत्पत्ति होती है, ग्रतः साधु को सामुदानिक भिक्षा ही ग्रहण करनी चाहिए और उसी में श्राहार-शुद्धि का पूर्णतया ध्यान रखना चाहिए |
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दिगम्बर परम्परा में सामुदानिक भिक्षा की मान्यता न होने
के कारण भिक्षागत अनेकों दोष देखे जाते हैं । इस में दिगम्बरं साधुत्रों के लिए विशेष रूप से भोजन बनाया जाता है। गृहस्वमिनी अपने हाथों से स्वयं अन्न को साफ करती है, चक्की द्वारा स्वयं पीसती है । उस अन्न को बालक यदि कोई छू नहीं सकता | उस ग्रन्न को पका कर स्वयं ही साधु को खिलाती है । इस प्रकार कई एक झंझट करने पड़ते हैं, जो कि साधु जीवन के भूपरण न बन कर दूषण बन जाते हैं । इसलिए स्थानकवासी परम्परा सामुदानिक भिक्षा के लिए विधान करती है |
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स्थानकवासी परम्परा और दिगम्बर परम्परा में मुख्य रूप से जो मतभेद चलता है, उसे १६ भागों में विभक्त करके ऊपर की पंक्तियों में वरिणत कर दिया गया है। इन मतभेदों के प्रतिरिक्त कुछ एक अन्य भेद भी हैं, जैसे स्थानकवासी परम्परा मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं रखती, दिगम्बर परम्परा नग्न तीर्थंकर मूर्तियों की पूजा करने में विश्वास रखती है । स्थानकवासी परम्परा मुख ढक कर बोलने में भाषा की निर्वद्यता स्वीकार करती है,.: पर दिगम्बर परम्परा में खुले मुंह बोलने से भाषा सावध होती हैऔर ढक कर बोलने से भाषा निर्वद्य होती है, ऐसी कोई ग्रास्था नहीं पाई जाती है। यदि बातें दिगम्बर परम्परा को स्थानकवासी परस्परा से भिन्न प्रकट करती हैं ।
प्रश्न- स्थानकवासी परम्परा, श्वेताम्बर मूर्ति