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प्रश्नों के उत्तर
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आसक्ति है, मोह है, तो परिग्रह है, यदि उन में मूर्द्धाभाव नहीं है, तो सब उपकरणों के होते हुए भी साधु अपरिग्रही ही है । साधु संयम साधना के लिए जिन वस्त्र आदि उपकरणों का उपयोग करता है, उन पर वह यदि ममत्व भाव नहीं रखता, तो उसे परिग्रही नहीं कहा जाता | श्री दशवैकालिक सूत्र में इस तथ्य का बड़ी सुन्दरता के साथ वर्णन किया गया है। वहां लिखा है
जं पिवत्थं पायं वा, कम्वलं पायपु छणं . तं पि संजमलज्जट्ठा, धारन्ति परिहरन्ति य ॥ न सो परिग्गहो वृत्तो, नायपुत्तेण ताइणा । मुच्छा परिग्गहो वृत्तो, इग्र वृत्तं महेसिणा ॥ - दशवं० प्र० ६ / २०-२१
अर्थात् - मोक्ष - साधक साधु जो कल्पनीय वस्त्र, पात्र, कम्बल तथा रजोहरण यदि आवश्यक वस्तुएं रखते हैं, वे संयम की लज्जा के लिए ही रखते हैं-अपने उपयोग में लाते हैं, ममत्व भाव के लिए नहीं ।
श्रमण भगवान महावीर ने वस्त्र, पात्रादि उपकरणों को परिग्रह नहीं बतलाया है, किन्तु मूर्च्छाभाव को परिग्रह कहां है । इन्हीं भगवान महावीर के प्रवचन को अवधारण करके महर्षि गरण-धर देवों ने भी मूर्च्छाभव को ही परिग्रह माना है ।
इसलिए स्थानकवासी परम्परा के विश्वासानुसार साधु वस्त्र, पात्र आदि उपकरण रख सकता है। उन पर यदि ममत्त्व भाव नहीं है तो वे उपकरण परिग्रह रूप नहीं हैं । वे उपकरण १४ -माने गए हैं, जिन का वर्णन पीछे पृष्ठ ७१० तथा ७११ पर किया जा चुका है ।
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