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. चतुर्दश अध्याय ~~~iiir~~~~~~ixixixixixi भावनागत उच्चता की अपेक्षा रखती है । इस परम्परा का विश्वास
है कि जब अन्तर्जगत की शुद्धि हो जाती है, अन्तः-स्वास्थ्य स्वस्थ . " हो जाता है, राग, द्वेष जीवन से सर्वथा निकाल दिए जाते हैं, तब
घातिक कर्मों का नाश होने पर जीवन सर्वज्ञत्व प्राप्त कर लेता
है। फिर भले ही वह सीसमहल में खड़ा हो, या किसी अटवी में . बैठा हो? . . . . . . .
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....... ..... महावीर का गर्भहरण . ... भगवान महावीर स्वामी का जीव जव' मरीचि (त्रिदण्डी)
के भव में था, तब जातिमद के कारण उस ने नीचगोत्र का बन्ध कर लिया था । अतः परिणामस्वरूप प्राणतकल्प (दसवें देवलोक) के पुष्पोत्तर विमान से च्यवकर वह ब्राह्मण-कुण्ड ग्राम में ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवानन्दा की कुक्षि में पाकर पुत्र रूप से : उत्पन्न हुआ। ८२ दिन व्यतीत हो जाने पर सौधर्मेन्द्र (प्रथम देवलोक के स्वामी शकेन्द्र महाराज) को अवधिज्ञान (ज्ञानविशेष, जिस से कुछ मर्यादा के साथ रूपी पदार्थों का प्रत्यक्ष बोध होता है) से इस . वात का बोध होने पर उन्होंने विचार किया कि तीर्थंकर भगवान · का जन्म ब्राह्मण के कुल में कभी नही हुआ करता, और न भवि
प्य में कभी ऐसा होगा, यह प्रकृति का नियम है। यह विचार कर
उन्होंने हरिणगमेषी देव को बुलाया और उसे आज्ञा दी कि चरम - तीर्थंकर भगवान महावीर का जीव पूर्वोपार्जित अशुभ कर्म के का- ..
रण ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हो गया है, किन्तु उसका जन्म वहां
से नहीं हो सकता, क्योंकि तीर्थंकर सदा क्षत्रियों के कुलों में जन्म ... लिया करते हैं, अतः तुम जाओ और देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ से ।
उस जोव का हरण करके क्षत्रियकुण्ड नगर के स्वामी महाराज ..