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प्रश्नों के उत्तर
नहीं । मां का दिल भर पाया । रोने लगी । अन्त में बोली-विक्कार है ऐसे मोह को । तू पागल है, जो पुत्र के मोह में विह वल हो रही . है । जगत में कौन किस का है ? माता, पुत्र आदि सभी सम्बन्धों । में कोई तथ्य नहीं है, ये सब काल्पनिक सम्बन्ध है । जीव अकेला आया है, और अकेला ही जाएगा। पुत्र आदि किसी ने भी साथ .. नहीं देना । किसी ने सच कहा है:
दुनिया के बाजार में चलकर पाया एक। .. मिले अनेकों बीच में अन्त एक का एक ॥
ममता का बांध टूट गया। माता की गंभीरता वढ़ती चली गई, वाह्य संसार को भूल कर अन्तर्जगत् में विहरण करने लगी।। अन्त में, एकत्व भावना के सहारे वीतरागता के महा-मन्दिर की उसने संव श्रेणियां पार कर लीं, उस की अध्यात्म चेतना उच्चता के किनारे पहुंच गई । बस फिर क्या था ? हाथो के हौदे पर ही .
घातिक कर्मों को क्षय करके माता का आत्ममन्दिर केवल-ज्ञान ... की दिव्य ज्योति से. ज्योतित हो उठा और उसी समय शेष आयु
आदि अघानिक कर्मों की समाप्ति होने पर मरुदेवी माता मोक्षधाम . में जा विराजी । जन्ममरण की परम्परा को सदा के लिए समाप्त करके उन्होंने परमात्मपद को प्राप्त कर लिया। . ... इस अवसर्पिणीकाल में मुक्ति-पुरी का सर्वप्रथम द्वार माता
मरुदेवी ने खोला था । सिद्धों के संसार में सर्वप्रथम दाखिल होकर । . अनन्त ज्ञान और अनन्त अानन्द में रमण करने वाली न केवल ..
इस अवसर्पिणीकालीन प्रथम नारी थी वल्कि यह वह पहला व्यक्ति
था जिसने इस युग में सर्वप्रथम मोक्ष प्राप्त की थी। ... .. ... "मरुदेवी माता हाथी के हौदे पर केवलज्ञान प्राप्त करके ...