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प्रश्नों
के उत्तर ..
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नक-वासी समाज ने इन को बहिष्कृत कर दिया था, इनका वैप.. उतार लिया था, इसलिए वेप के कारण स्थानकवासी समाज के
सम्बन्ध में ये ऐसी असंगत और ऊटपटांग बातें लिख गए हैं । द्वेषा-... ... ध क्यक्ति द्वष में प्राकर क्या कुछ नहीं कहता, बदला चुकाने के
लिए जो कुछ भी उस से बन पड़ता है, वह करता है। ऐसी ही ___ दशा श्री विजयानन्दसूरि जी की थी। अतः जनतत्त्वादर्श में उक्त .. ... पंक्तियें लिखकर इन्होंने केवल अपने द्वप का ही परिचय दिया है।
इन पंक्तियों में वस्तुस्थिति कुछ नहीं है । आप पूछ सकते हैं कि . . इस में प्रमाण क्या है ? इस के उत्तर में मैं अपनी ओर से कुछ न ..
कहकर श्री विजयानन्दसूरि जी के एक पत्र की कुछ पंक्तियां उद्धृत .. : कर देता है, इन से स्पष्ट हो जाएंगा कि मुखवस्त्रिका वांधने की ।
परम्परा कहां तक प्राचीन और सत्य है ? और श्री विजयानन्द जी . . स्वयं उसे कितना अच्छा समझते हैं ? : . . . ..
विजयानन्दसूरि जी ने कार्तिक कृष्णा अमावस्या सम्बत् । ... १६४७ बुधवार को सूरत से मुनि आलमचन्द्र जी महाराज को यह - .. पत्र लिखा था । पत्र के लेखक पंजाब पीताम्बर सम्प्रदाय के मान्य..
.... .. * तत्त्वनिर्णय प्रसाद,स्तंभ ३३ के पृष्ठ ५६० की “ढूंढक पंथ जैन. :
. श्वेताम्बर मत में नहीं है,यह तो सम्मूच्छिम पन्थ है सम्वत् १७०९ में सुरत : . के बासी लवजी ने निकाला है, जैसे दिगम्बरों में तेरापन्थी, गुमानपन्थी ..
आदि तथा कितनेक बिना गुरु के नग्न दिगम्बर मुनि, भोले श्रावगियों से . धन लेने वास्ते बने फिरते हैं, ऐसे ही श्वेताम्बर मत के नाम को कलंकित .. करने वाला, प्राचार-विचार से भ्रष्ट डूंढक मत हुआ है । इन का निन्द्य आचरण इन को ही दुःखदायी होवेगा.......". ये पंक्तियां स्पष्ट रूप से ... ' विजयानन्दसूरि जी की पान्यता का परिचय दे रही हैं । .....