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प्रश्नों के उत्तर
कल्प होता है । यद्यपि दीक्षा के समय इन्द्र द्वारा दिया गया देवदूष्य (दिव्य वस्त्र ) १३ मास तक भगवान महावीर के कन्धे पर रहता है, किन्तु उसके गिर जाने पर वस्त्र का प्रभाव हो जाता है । फिर वे सदा नग्न रहते हैं । हाथ ही उन के पात्र होते हैं । इन्हीं में वे भोजन करते हैं । इन के वस्त्र दिशाएं होती हैं । पात्र, रजोहरण, मुखवस्त्रिका, चादर आदि किसी भी प्रकार का उपकरण इन के पास नहीं होता, ये सर्वथा त्यागी, विरक्त तथा अपरिग्रही होते हैं । ऐसे अध्यात्मयोगी महा-पुरुष जिनकल्पी या अचेलक कहलाते हैं । जिनकल्पी साधुत्रों का आचार-विचार बड़ा ऊंचा और कठोर होता है । साधनागत कठोरता को अधिकाधिक जीवन में ले आना ही इन के साधक जीवन का सर्वतोमुखी ध्येय रहता है ।
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स्थविरकल्प वस्त्रधारी साधुयों का होता है । स्थविरकल्पी साधु, वस्त्र, पात्र आदि उपकरण का उपयोग करते हैं। ये साधु अपना जीवन व्यवहार चलाने के लिए १४ प्रकार का उपकरण रख सकते हैं । वह इस प्रकार है:
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१--पात्र-गृहस्थों के घर से भिक्षा लाने के लिए काठ, माटी
तथा तुम्बे आदि द्वारा निर्मित भाजन ।
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२- पात्रबन्ध - पात्रों को बांधने का कंपड़ा ।
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३ - पात्र स्थापना - पात्र रखने का कपड़ा ।
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४- पात्र - केसरिका - पात्र पोंछने का कपड़ा |
५- पटल-पात्र ढकने का कपड़ा ।
६ - रजस्त्राण - पात्र लपेटने का कपड़ा ।
७ - गोच्छक - पात्र प्रादि साफ करने का कपड़ा ।
5- १०- प्रच्छादक-प्रोढने की चादर । साधु उत्कृष्ट तीन चादर