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.... चतुर्दश अध्याय
१२३ --------rrrrrrrr-~~~~~~~~~~~~mrrrrrrr उन की हृदय-शान्ति के लिए स्थानकवासी साधु. उस घर से भोजन नहीं. लेते हैं और जिस घर में इस के सम्बन्ध में कोई हीनता का विचार नहीं होता, वहां भोजन ग्रहण करने में स्थानकवासी साधु कोई दोष नहीं मानते हैं। ... .
.. वास्तव में देखा जाए तो सूतक-पातक · मानना, एक अन्धपरम्परा है, इस में कोई भी सार नहीं है । क्योंकि यदि प्राणियों के : जन्म तथा मरण आदि बातों को लेकर ही सूतक-पातक का.विचार : किया जाएगा तो जीवन का निर्वाह ही नहीं हो सकता। उदाहरणार्थ पानी को ही ले लीजिए। जैन धर्म की दृष्टि से जलकायिक जीवों की जधन्य (कम से कम) स्थिति अन्तर्मुहूर्त (४८ मिण्टों से कम काल) की . होने से जल में स्थित असंख्य जीव जन्म लेते हैं और मरते हैं। : ऐसी स्थिति में जहां पानी पड़ा है वहां सूतक होगा ही। सूतक की . . ..दशा में न पानो लिया जा सकता है और न वहां पर ठहरा ही जा ।
सकता है। घरों में सब्ज़ियां काटी जाती हैं, वनाई जाती हैं, इस में जीवों का संहार होता है । इस के अतिरिक्त, घरों में चूहे, कीड़ेमकौड़े, मक्खी; मच्छरः आदि अनेकों चल जीव प्रायः प्रतिदिन . मरते रहते हैं । फिर किस-किस का सूतक-पातक मनाते फिरेंगे ? .. - और लीजिए, यदि किसी हलवाई के यहाँ कोई पुत्र उत्पन्न हुया है या । उसकी मृत्यु हो गई है, तो उसकी दुकान खुलने पर लोग उसके यहाँ :
से मिष्टान्न नहीं खरीदेंगे ? आजकल दूध प्रायः बाज़ार से ही घरों . ' में आता है। बाजार का दूध प्रायः दोझियों (दूध बेचने वालों) के यहां
का होता है। उन के यहां प्रायः गाय, भैंसों के बच्चे होते ही रहते ... हैं, उन बेचारों के सूतक-पातक के दिन पूरे भी नहीं होते। परन्तु . उन के यहां का दूध तो बाजार में बिकता ही है । क्या उसे खरीदा .
नहीं जाता ? यदि इस प्रकार सूतक-पातक के विचारों से खाने-पीने