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प्रश्नों के उत्तर धोवन न जूठा ही होता है और न वह गन्दा ही होता है। रसोई के वरतनों के धोवन को यदि जूठा मान लिया जाए तो सारी रसोई ही जूठी माननी पड़ेगी, क्योंकि सारा भोजन उन्हीं बरतनों में.. बनाया जाता है। अतः रसोई के वरतनों के धोवन को जूठा नहीं कहा जा सकता । और उस पानी को गन्दा भी नहीं कहा जा . सकता, क्योंकि दो घड़ी के अनन्तर राख-करणों के पानी के अन्दर . बैठ जाने पर वह सर्वथा स्वच्छ और निर्मल निकल पाता है । मलिनता की तो उस में गंध भी नहीं रहने पाती। इस का दैनिक. प्रयोग इस सत्य का गवाह है। .:. प्रासुक जल के सम्बन्ध में इसी पुस्तक के १२वें अध्याय में, एषणासमिति के व्याख्यान में ऊहापोह किया गया है। जिज्ञासु उसे देख सकते हैं।
... .. सातवां अन्तर है-सूतक-पातक मानने का । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में सूतक-पातक मानने का बड़ा जबर्दस्त विश्वास - पाया जाता है । किसी के घर वालक या बालिका का जन्म हुआ
हो तो. कुछ निश्चित दिनों तक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक साधु उस धर में भोजनादि को नहीं जाते । उस घर से भोजन लेना इन के यहां सदोष तथा घृणित समझा जाता है किन्तु स्थानकवासी परम्परा : में सूतक-पातक के सम्बन्ध में ऐसा कोई विचार नहीं है । व्याव
हारिक रूप से इसे भले ही मान लिया जाता है, पर इंस. को सैद्धान्तिक दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं दिया जाता । व्यावहारिक दृष्टि का अर्थ भी इतना ही है कि जिस घर में बालक, बालिका ने जन्म लिया है, उस घर वाले यदि सूतक-पातक को मानते हैं, और साधु के आहार आदि ले जाने पर कुछ बुरा अनुभव करते हैं तो केवल