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चतुदश अध्याय
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की अकेली साध्वी भिक्षा आदि कार्यों के लिए जा सकती है किन्तु स्थानकवासी परम्परा की अकेली साध्वी कहीं नहीं जा सकती है। दो साध्वियां ही उक्त कार्य के लिए जा सकती हैं। इस प्रकार अन्य भी ऐसी मान्यताएं हैं जो स्थानकवासी परम्परा और श्वेताम्बर . मूर्तिपूजक परम्परा में मतभेद का कारण बन रही हैं। विस्तारभय · से सभी न बता कर परिचय के लिए केवल कुछ एक मान्यतागत .
मतभेदों का वर्णन किया गया है। .. प्रश्न-स्थानकवासी परम्परा और दिगम्वर परम्परा . इन दोनों में आचार-विचार-सम्बन्धी क्या मतभेद है ?
उत्तर-स्थानकवासी परम्परा और दिगम्बर परम्परा दोनों में पर्याप्त मतभेद उपलब्ध होते हैं । उन मत-भेदों को संक्षेप में १६ भागों में बांट सकते हैं। वे भाग इस प्रकार हैं:१. केवली का कवलाहार । २. केवली का नीहार ३. स्त्री की मुक्ति ... .. ४. शूद्र की मुक्ति ५. वख-सहित-मुक्ति ... ६- गृहस्थ-वेष में मुक्ति .... ७. मुनियों के १४ उपकरण , ८. तीर्थकर मल्लिनाथ का स्त्री
... ... होना ... ... ... .. १. अग्यारह अंगों की विद्य- .. १०. भरत चक्रवर्ती को शीशमहल .... मानता
. में केवल ज्ञान की प्राप्ति ११. भगवान महावीर स्वामी १२. महावीर को तेजोलेश्याका गर्भहरण
जनित उपसर्ग १३. महावीर का विवाह . १४. तीर्थकर के कन्धे पर - (कन्या-जन्म)
देव-दृष्य (वस्त्र) १५. मन्देवी माता को हाथी पर. १६. साधु की सामुदानिक गोचरी
चड़े हुए केवल-ज्ञान और मुक्ति