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“प्रश्नों के उत्तर ..."
- दोनों परम्पराओं में सर्वप्रथम अन्तर पागम-सम्बन्धी मान्यता का है । स्थानकवासी परम्परा ·३२. आगमों को प्रामाणिक मानती है । उसका विश्वास है कि ये आगम भगवान महावीर की वाणी है, और यही भगवान ने फरमाए हैं। इन से अधिक नहीं । किन्तु श्वेताम्बरः मूर्तिपूजक परम्परा ४५ पागम मानती है । ३२ तो वही हैं जो स्थानकवासी परम्परा द्वारा मान्य हैं, तथा १३ . अन्य हैं । इस के अतिरिक्त, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा इन ग्रागमों पर समय-समय पर प्राचार्यों ने जो संस्कृतटीकाएं लिखी हैं तथा इन पर जो भाष्य आदि लिखे हैं उन को भी प्रागमों की .. भांति प्रामाणिक मानती है, किन्तु स्थानकवासी परम्परा का ऐसा विश्वास नहीं है। यह परम्परा टीका और भाष्य आदि को आगमों.. की भांति प्रामाणिक नहीं मानती । मूल : ३२ आगम ही इस की ... श्रद्धा का केन्द्र माने जाते हैं । इस परम्परा में मूल आगमों को ही . . ~~mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm .........xस्थानकवासी परम्परा द्वारा प्रामाणिक रूप से मान्य ३२ प्रागम . निम्नोक्त हैं
११-अगसूत्र-पाचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवामांग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथांग,उपासकदशांग,अन्तकृशांग,अनुत्तरोपपातिकदशांग, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र ।
१२-उपांगसूत्र-यौपपातिक, रायप्रसेणी, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, :, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्राप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा। . : ४-मूलसूत्र-दशवकालिक, उत्तराध्ययन,नन्दी, अनुयोगद्वार । ४-छंद- ... मूत्र-बृहत्कल्प, व्यवहार,निशीथ, दशाश्रुतस्कंध । ये सब ३१ होते हैं । और . पाचश्यक मूत्र मिलाकर ये ३२ हो जाते हैं। . .. : ..::
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