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... चतुर्दश अध्याय
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- लोग भूखे मरने लगे, सर्वत्र भुखमरी ने अपना साम्राज्य स्थापित . कर लिया। .. ..
. . ... ... ... .. .... दुष्काल का प्रभाव साधु-मुनिराजों पर भी पड़ा । परिणामस्वरूप साधु-मुनिराजों को भिक्षा दुरप्राप्य हो गई । लोग सम्पन्न हों, सर्वथा सुखी हों, तथा घरों में अन्नादि खाद्य सामग्री पर्याप्त विद्यमान हो तभी दान आदि की स्थिति बन सकती है। जब लोग स्वयं ही भूख के हाथों तंग आ रहे हों तो वे साधु-मुनिराजों को. . भोजन कैसे दें ? दुष्काल के प्रभाव से लोग स्वयं व्याकुल थे, ऐसी दशा में साधु-मुनिराजों को भोजन की प्राप्ति सुविधा-पूर्वक कैसे हो सकती थी ? अतः साधना-प्रिय मुनिराजों ने उस समय को तपः-साधना का सुन्दर तथा अनुकूल अवसर समझ कर संथारा कर लिया, आमरण अनशन करके अपने जीवन के अन्तिम क्षणों को जप-तप की आराधना में लगा दिया । इतिहास बतलाता है कि उस समय ७८४ साधु-मुनिराजों ने आमरण अनशन करके अपना आत्म-कल्याग किया। और अन्य अनेकों मुनिराज दूर देशान्तर में चले गए.। वहां जाकर उन्होंने अपना संयमी जीवन व्यतीत करना प्रारम्भ कर दिया । रह गए वे मुनि, जिन्होंने न तो मा- . . मरण अनशन किया और नाँही जो दूर देशान्तर में गए। पेट तो । इन्हें भी भरना था । जठराग्नि को शान्त किए बिना तो...जीवन.. का निर्वाह नहीं हो सकता। अतः उन्होंने भी उदर-पूर्ति का एक. उपाय सोच निकाला। इन्होंने अपने साधु-जीवन-चर्या में कई एक . परिवर्तन कर लिए। सब से पहला परिवर्तन था-हाथ में लकड़ी
रखना । भिक्षुक वृत्ति से स्पर्धा रखने वालों को दूर हटाने के लिए : . .. सदा हाथ में दण्ड रखना प्रारम्भ कर दिया । ........ ...
... दुष्काल की स्थिति में याचकों का बढ़ जाना स्वाभाविक