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चतुदश अध्याय
चालू कर दिया। पहले साधु सदा मुख पर मुखवस्त्रिका का प्रयोग किया करते थे, किन्तु उन से सर्वथा भिन्न होने के लिए और एक स्वतंत्र सम्प्रदाय बनाने के लिए अपनी वेषभूषा को सर्वथा परिवर्तित कर लिया गया। ... ..
... . .... आज तो श्वेताम्बर मूर्ति-पूजक परम्परा में मुखवस्त्रिका एक म्हमाल सा'बन गया है। भापण आदि की आवश्यकता पड़ने
पर उसे हाथ में रख कर मुख के आगे रखा जाता है। अन्तिम · · वर्षों से तो इस में अन्तर पा गया है । पूर्व जैसी दृढ़ता अब देखवे .. .... में नहीं पाती । अब "मुख ढक कर ही बोलना है, अन्यथा नहीं"
. ऐसी दृढ़ अवस्था नहीं रहने पाई है। व्यवहार इस सत्य का गवाह - है। अस्तु, . . . : ..
. : ... इस प्रकार अनेक परिवर्तन कर लेने पर उक्त जैनसाधु एक .: स्वतंत्र सम्प्रदाय के रूप में समाज के सामने आने लगे। कठोरतम ..
चारित्र-मार्ग में रही हुई कठिनाईयों के कारण यह संम्प्रदायः उस पर चलने में अपने को अक्षम पाकर शास्त्रीय साधना के राजमार्ग से पीछे हट गया है और काल की अनेकों घाटियां पार करता हुआ यही सम्प्रदाय आज हमारे सामने श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के नाम से प्रसिद्ध हो रहा है। ...... .
पंजाब का मूर्तिपूजक सम्प्रदाय-- : ... पंजाब का श्वेताम्बर. मूर्तिपूजक सम्प्रदाय बने तो लगभग .११३ वर्ष हुए हैं । विक्रम सम्बत् १६२८ में इस का जन्म हुआ था। .. श्री विजयानन्द जी सूरि इस के संस्थापक थे। ये पहले.. पञ्चनदीयः .
स्थानकवासी सांधु थे । आत्माराम इन का नाम था । स्वनामधन्य. . . पूज्यवर श्री जीवन राम जी महाराज के ये शिष्य थे। समाज ने "
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