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चतुर्दश अध्याय
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के इतिहास में वह सदा अमर रहेगी। ..पंजाव पट्टावली का विश्वास है कि धर्म-प्राण लौंकाशाह .. - वृद्वत्व के कारण स्वयं दीक्षा नहीं ले सके थे। उन की इच्छा अंव- ..
श्य थी कि साधु बन कर मैं भी समाज की सेवा करू । “समाज में फैल रहे शिथिलाचार और जड़-पूजा की अन्ध मान्यता को मूलतः .. समाप्त कर दू, परन्तु शारीरिक दुर्बलता तथा वार्धक्य के कारण उनका यह मनोरथ सफल नहीं हो सका । तथापि वे अपने सिखाए। हुए उम्मीदवारों को श्रद्धेय आचार्यप्रवर श्री ज्ञान ऋषि जी म० की .. सेवा में भेजते रहे, ताकि वे तो अपना आत्म-कल्याण कर सकें। ... एक पट्टावली में ऐसा भी लिखा है कि श्री लौकाशाह ने स्वयं भी . मार्गशीर्ष शुक्ला पंचमी, सम्बत् १५३६ को, श्रद्धेय श्री ज्ञान ऋषि जी म० के शिष्य श्री सोहन लाल जी म० के पास दीक्षा ले ली .. थी। तथा इनके उच्च-कोटि के संयम से प्रभावित होकर ४०० व्यक्ति इन के शिष्य बन गए और लाखों व्यक्तियों ने इन की . दिव्य आध्यात्मिक ज्योति से ज्योतित हो कर श्रावकत्व अंगीकार किया। .... ..धर्म-प्राण लौंकाशाह के जीवन-वृत्तों से यह भली-भांति प्रमा- .. गित हो जाता है कि लौकाशाह एक क्रांतिकारी महापुरुष थे। उन्होंने तात्कालिक सामाजिक तथा आध्यात्मिक बुराइयों को दूर...' करने में अपनी समस्त शक्तियां लगा डाली और अन्त में- विजय · श्री इनके चरणों में नतमस्तक हो गई । लाखों व्यक्तियों ने आप .
से ज्ञान का प्रकाश पाया, लाखों आप के श्रद्धालु बने । अहमदा. बाद से लेकर देहली तक आप ने अहिंसा-धर्म का ध्वज लहराया । ..
... अहिंसा, संयम और तप की त्रिवेणी में धर्म-प्राण लौंकोशाह . स्वयं स्नान किया करते थे और जो भी आप के सम्पर्क में ...
जय