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प्रश्नों के उत्तर
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खण्डित या भंग नहीं होने पाई। इसलिए स्थानकवासी परम्परा की प्राचीनता स्वतः गिद्ध है।
ऊपर जो भगवान महावीर की शिष्य-परम्परा दी गई है, यह पंजाबी पट्टावली के आधार पर दी गई है। इसलिए इसके अन्त
में,पंजाबी पूज्य प्राचार्य मुनिराजों का सम्बन्ध जोड़ा गया है। भा· रत के अन्य प्रान्तों में स्थानकवासी परम्परा के जितने भी साधु .
मुनिराज विचर रहे हैं, वे सब भी ऊपर की भगवान महावीर की वंश-परम्परा से सम्बन्धित ही हैं । किस का किस ग्राचार्यदेव से · सम्बन्ध जुड़ा हुआ है ? यह उनकी अपनी-अपनी पट्टावली से जाना · · जा सकता है । सभी पट्टावलियों को अंकित करना न तो इस अ-....
ध्याय का उद्देश्य है और नाहीं उन सब की यहां आवश्यकता ही है। यहां केवल भगवान महावीर की शिष्य-परम्परा बताकर स्था
नकवासी समाज की प्राचीनता को दिग्दर्शन मात्र कराया गया है। .. ... और यह बताया गया है कि स्थानकवासी परम्परा के वर्तमान . ... साधुओं का सम्बन्ध सीधा भगवान महावीर से जुड़ जाता है, उस .. में किसी भी प्रकार की. बाधा नहीं पहुंचने पाती। -... मूर्ति-पूजक श्वेताम्बर साहित्य में स्यानकवासी समाज के
सम्बन्ध में एक कथा मिलती है । पीताम्बर सम्प्रदाय के प्राचार्य " श्री विजयानन्द सूरि द्वारा रचित जैनतत्त्वादर्श (उत्तरार्द्ध) के पृष्ठ - ५३६ तथा ५३७ पर इस सम्बन्ध में लिखा है। इस का प्राशय ...
इस प्रकार है- सूरत नगर में वोहरावीर नाम का एक सेठ था । फूला नाम ..
की उसकी वालं-विधवा एक पुत्री थी। उस ने लव जी नाम का.. ‘एक बालक गोद ले लिया । लौंका यति के पास वह पढ़ने लग गया । यति के सम्पर्क से उस को वैराग्य हो गया और लौंका यति