________________
. .६
६७
. चतुर्दश अध्याय . .
६५ ... ५८-पूज्य श्री विजयसिंह जी ७५-पूज्य श्री जयराज जी.. ५९-... शिव राजर्षिजी ७६-,, लवजी ऋषि .. ६०- , . लाल जी .७७- . सोम जी ६१- , ज्ञान ऋषि जी ७८- , हरिदास जी .. ६२- . , भानुलुणा जी .. ७९-., विन्दरावन जी :
६३- ,, पुरु जी . .८०- ,, भवानीदासजी ऋषि .६४- , जीवराज जी ८१- मलूक चन्द्र जी . . ६५-., भावसिंह जी ८२- ,, महासिंह जी ६६- , लघुवरसिंह जी ८३- कुशालसिंह जी
,, यशवन्त जी ८४-,, छज्जमलजी तपस्वी ६८- रूपसिंह जी ८५- , राम लाल जी । ६९- "
दामोदर ,, ८६- , अमरसिंह ,, म०
धनराज ,, .८७- , रामवक्ष जी म० ७१- , चिन्तामणि जी ८८-- मोतीराम जी म... ७२- , क्षेमकर्ण जी ८९- , सोहनलाल ,, म० ७३-, धर्मसिंह ,, , ९०- , कांशी राम ,, म० ७४- नगराज ,, ९१- , आत्माराम ,, म० .. इस तरह स्थानकवासी परम्परा के पूज्य मुनिराजों के साथ भगवान महावीर की शिष्यवंशावलो का सम्बन्ध मिल जाता है। इससे भली-भांति: यह प्रमाणित हो जाता है कि स्थानकवासी पर- : म्परा सर्वथा प्राचीन परम्परा है और भगवान महावीर से लेकर.. ..आज तक लगातार चली आ रही है । यह परम्परा कहीं भी
७०-
,.. धनराज
"