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· चतुर्दश अध्याय
आचार्यदेव श्री स्यूलिभद्र जी म० के अनन्तर जो पूज्य आचार्य हुए, उनके शुभं नाम निम्नोक्त हैं९-पूज्य श्री आर्य महागिरी जी १८-पूज्य श्री रेवन्त स्वामी १०- ,, बलसिंह स्वामी १९- ,, सिंहगण ., ११-., सुवन , २०- ,... स्थण्डिल , १२- , वीर
२१-., हेमवन्त .... १३- ,,. संछडोल , २२- , नागजिन ,
,,. जीतधर, २३-., गोविन्द , १५- , आर्य समद ,, २४- , भूतदिन , नंदला
२५- ." छागण १७- ,, नाग-हस्त ,,, २६-- ,, दूसगणि ,
...... ... .. २७-देवद्धि क्षमाश्रमण स्वामी ... . वीरसम्वत् १८० और विक्रम सम्वत् ५१० में पूज्य आचार्य
श्री देवद्धि क्षमाश्रमण हुए। उन्होंने वल्लभीपुर में श्रुतरक्षा के लिए मुनिराजों की एक परिषद् बुलाई थी, जिसमें आज तक जो भी ।
आगम-साहित्य उपलब्ध है,उसे लिपिवद्ध कराया गया। ऐसा करने का . . एक कारण था और वह यह कि एक बार क्षमाश्रमण जी म० कहीं ..
से सूण्ठ लाए थे, आवश्यकता पूरी होने पर शेष जो सूण्ठ वची उसे वापिस करना भूल गए । स्मरण पाने पर उन्हें वड़ा पश्चात्ताप
हुया, और सूण्ठ वापिस की। साथ में एक विचार पाया कि काल ... के प्रभाव से अव स्मरण शक्ति शिथिल पड़ती जा रही है। इस
शिथिलता का प्रभाव अागम-साहित्य पर भी पड़ेगा,इस से शास्त्रीय : ज्ञान का ह्रास अवश्यंभावी है, अतः क्या ही अच्छा हो कि यदि
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