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: प्रश्नों के उत्तर
mmmwarmir श्रागम-साहित्य को लिपिबद्ध करा दिया जाए। फलतः उन्होंने वल्लभीनगरी में मुनिराजों का एक वृहद् सम्मेलन बुलाकर जिस मुनि . को जो पाठ याद था वह सब संकलित करके लिपिवद्ध करा दिया। आज जो भागम-साहित्य उपलब्ध हो रहा है । वह सब इन्हीं प्राचार्य श्री की दूरदर्शिता-पूर्ण विलक्षण बुद्धि का सुपरिणाम है। पूंज्यपाद देवद्धिक्षमाश्रमण के अनन्तर होने वाले पूज्य आचार्य । मुनियों के शुभ नाम निम्नोक्त हैं:२८-पूज्य श्री वीरभद्र स्वामी ४३-पूज्य श्री लक्ष्मीलाल स्वामी २९- , शंकरभद्रं , ४४- ,, रामपि , ३०- , यशोभद्र ,, ४५- ,, पद्मसूरि जा . ३१- , वीरसेन , ४६- , हरिसेन जी .३२-., वीरग्रामसेन,, ४७- , कुशलदत्त जी
जिनसेन ,, ४८- , जीवनऋषि जी, ३४- , हरिसेन . , .४९- ,, जयसेन जी, ... ३५-., . जयसेन , ५०- , विजय ऋषि जी ..३६- ,,:: जगमाल . ,, ५१- , देवर्षि जी, .३७देवर्षि , ५२
" सूरसेन ,, ३८-... भीम ऋषि ,, ५३
, महासूरसेन जी, ३९-,, कर्म जी , ५४-- , महासेन जी, .. ४०- , राजषि , ५५- , जयराज जी, -... ४१- , देवसेन , ५६-., गजसेन जो, ४२ : " शकसन
...., ५७- , मिश्रसेन जी,
३३-
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। शकसेन