________________
६६०
प्रश्नों
के उत्तर
:
अाखिर सचाई थी । आखिरकार वह इस पत्र के रूप में प्रकट हो ही गई । इस से बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि श्री विजयानन्दसूरि का यह कहना कि स्थानकवासी समाज की उत्पत्ति १७०६ में हुई। और तभी से मुख पर मुखवस्त्रिका बांधने की परम्परा चालू हुई, सर्वथा दोषपूर्ण है । वस्तुस्थिति यही है कि स्थानकवासी परम्परा .
सब से प्राचीन परम्परा है और वह भगवान महावीर से पूर्णतया : सम्बन्धित है । इस में सन्देह के लिए कोई स्थान नहीं है ।
... प्रश्न-वीर लौंकाशाह कौन था ? स्थानकवासी परम्परा में इसका क्या स्थान है ? इस परम्परा का इसे
आदि-पुरुष कहा जाता है ? यह कहां तक सत्य है ?
- उत्तर-स्थानकवासी परम्परा रूढ़िवाद और अन्ध परम्परा ...का सदा विरोधी रही है। इस ने जड़-पूजा के स्थान पर गुण-पूजा
की प्रतिष्ठा की है । गुण-पूजा की उपयोगिता तथा कल्याणकारिता: .... का सत्य समझा कर जनमानस का सदा इसने मार्ग-दर्शन किया है। ... कहा जा चुका है कि यह परम्परा प्राचीन है और भगवान . महावीर के युग से लेकर आज तक बिना किसी अन्तर के लगातार
चली आ रही है । इस को पल्लवित और पुष्पित बनाने के लिए अनेक महापुरुषों ने समय-समय पर अपना योगदान दिया है।
भगवान महावीर की शिष्य-परम्परा या पट्टधर (प्राचार्य)-परम्परा __के पूज्य आचार्य श्रमण महापुरुषों के शुभः नाम बताए जा चुके हैं।
धर्मप्राण वीर लौंकाशाह भी उन गृहस्थ महापुरुषों में से एक हैं, .: जिन्होंने स्थानकवासी परम्परा के विकास तथा समुत्कर्षः के लिए
अपना सर्वस्व, अर्पित कर दिया था और जीवन की सभी शक्तियां लगा कर इस परम्परा को सम्बधित तथा सम्पोषित करके जिन्होंने