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... त्रयोदश अध्याय . .
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१० भाई थे। सब से बड़े आप के पिता थे। सब से छोटे श्री वसुदेव जी थे । समुद्र-विजय जी के घर आप ने जन्म लिया था और त्रिखण्डाधिपति कृष्ण ने वसुदेव के यहां । इस प्रकार पाप कर्म-योगो
श्री कृष्ण जी के ताऊ के पुत्र, भाई थे । कृष्ण जी ने आप से ही धर्मोपदेश सुना था ! और हजारों यदुवंशियों को श्राप के चरणों में दीक्षित करवा कर तीर्थकर-गोत्र का वध किया था।
आप बड़े ही कोमल प्रकृति के महापुरुप थे। बाप की कोमलता के अनेकों उदाहरण मिलते हैं । प्रस्तुत में केवल एक की चर्चा की जाएगी । कुमारावस्था में जूनागढ़ के राजा की पुत्री राजी- .. मती से नेमिनाथ का विवाह सुनिश्चित हुया । बड़ी धूम-धाम के साथ बारात जूनागढ़ के निकट पहुंची । उस समय नेमिनाथ, बहुत से राज-पुत्रों के साथ रथ में बैठे हुए आस-पास की शोभा देखते जाते थे। इन की दृष्टि एक और गई तो इन्होंने देखा कि बहुत से पशु एक वाड़े में बन्द हैं.। वे निकलना चाहते हैं, पर उन के निकलने का कोई मार्ग: नहीं है । पशुओं की याकुलता-पूर्ण दशा देख , कर इन का दिल पसीज उठा। उन्होंने सारथि को रथ रोकने का आदेश दिया और साथ में पूछा कि ये इतने पशु इस तरह क्यों रोके हुए हैं ? नेमिनाथ को उस सारथि से यह जानकर बड़ा खेद हुया कि उन की बारात में आए हुए अनेक राजाओं के आतिथ्यसत्कार के लिए इन पशुओं का वध किया जाने वाला है, और इसलिए ये बाड़े में वन्द हैं । नेमिनाथ के दयालु हृदय को बड़ा ही कष्ट वहुंचा । वे बोले-यदि मेरे विवाह के निमित्त इतने पशुओं का . जीवन संकट में है, तो धिक्कार है, ऐसे विवाह को ! अब मैं विवाह नहीं कराऊंगा। वे तुरन्त नीचे उतरे और अपने आभूषण सारथि को देकर वन की ओर चल दिए। . . .