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त्रयोदश अध्याय
६३६ में सोने के सिंहासन को लात मार कर विश्व-कल्याण के लिए घर से निकल पड़े ! और. मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी को साधु बन कर सर्वप्रथम तपस्या द्वारा अपने को साधना प्रारंभ कर दिया। . . भगवान महावीर ने साधु बनते ही उपदेष्टा का आसन ग्रहण नहीं किया था। औरों को समझाने से पहले वे स्वयं को समझाना चाहते थे। उन का विश्वास था कि जब तक साधक अपने · जीवन को न सुधार. ले, अपनी दुर्वलताओं पर विजय प्राप्त न कर लें, तब तक उसे प्रचार-क्षेत्र में नहीं आना चाहिए। यदि कोई
आता है तो उसे सफलता प्राप्त नहीं हो सकती। इसीलिए महावीर ने साधु बन कर वारह वर्ष तक घोर और कठोर तप किया। मानव समाज से अलग-थलग रहकर जंगलों में, पर्वतों की गुफाओं में निवास कर आत्मा की अनन्त प्रसुप्त आध्यात्मिक शक्तियों को जगाना ही उन दिनों उन का एक मात्र लक्ष्य था । अन्त में, उन
की साधना सफल हुई और वैशाख शुक्ला दशमी के दिन भगवान : महावीर को केवल-ज्ञान और केवल-दर्शन का अखण्ड प्रकाश प्राप्तं ..
हो गया । केवल ज्ञानी बन कर महावीर ने मानव समाज में मानव ... .. जगत . की सोई मानवता को जगाने का प्रवल आन्दोलन चालू कर दिया। ... . .. ... ... ... . .. ... ... .
भगवान महावीर के प्राचरण-प्रधान धर्मोपदेशों ने भारत की . काया ही पलट करके रख दी । वेद-मूलक हिंसक विधि-विधानों में . लगे हुए बड़े-बड़े दिग्गज विद्वान भी भगवान के चरणों के पुजारी . बन गए। इन्द्र-भूति गौतम जो अपने युग के एक धुरन्धर दार्शनिक और क्रिया-काण्डी ब्राह्मण थे, पावापुर में विशाल यज्ञ का
आयोजन कर रहे थे,इन पर भगवान के विलक्षण ज्ञान-प्रकाश और अखण्ड तपस्तेज का ऐसा अपूर्व प्रभाव पड़ा कि वह सदा के लिए ..