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लित है |
चतुर्दश संध्याय
-६७३
भगवान महावीर की शिष्य - परम्परा
स्थानकवासी परम्परा की प्राचीनता तथा अखण्डित धारा को समझने के लिए भगवान महावीर की शिष्य-परम्परा को देखना होगा । अतः नीचे की पंक्तियों में भगवान महावीर की शिष्यपरम्परा या शिष्य - वंशावली का परिचय कराया जाएगा
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१ – पूज्य श्री सुधर्मा स्वामी
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भगवान महावीर का जब निर्वारण होता है, उस समय ग्रवसर्पिणी काल का चतुर्थ प्रारक चल रहा था। पंचम आरक लगने में तीन वर्ष और साढ़े सात मास शेष थे । इसके ग्रनन्तर पंचम आरा चालू हो जाता है । महावीर निर्वारण से ४७० वर्ष बाद महाराज विक्रमादित्य ने अपना विक्रम सम्वत् चलाया, ऐसा इतिहास - वेत्तानों का मत है । इस समय विक्रम सम्वत् २०२० चल रहा है । इस से सिद्ध होता है कि आज से ४७० + २०२० = २४६० वर्ष पूर्व भगदान महावीर स्वामी का शासन क़ायम था । इन के निर्वाण के अनन्तर संघ व्यवस्था का उत्तरदायित्व श्री सुघर्मास्वामी के कन्धों पर श्रा पड़ा था ।
प्रश्न हो सकता है कि भगवान के प्रधान शिष्य श्री गौतम स्वामी जी म० को भगवान का धर्म-सिंहासन क्यों नहीं सम्भाला गया ? इन्द्र-भूति गौतम केवली बन चुके थे, तब महावीर के वाद आचार्य पद इन्हें भी दिया जा सकता था। पर ऐसा न करके श्री सुधर्मा स्वामी को आचार्य क्यों बनाया गया ? केवली को छोड़कर अकेवली (छद्मस्थ) को आचार्यपद देने का क्या करण है ? इस के समाधान में निवेदन है कि जैन धर्म के प्राध्यात्मिकः जीवन की