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प्रश्नों के उत्तर
हिंसा की विराट् साधना ने जीवन को इतना ऊंचा उठा दिया: कि जस्तू स्वामी के केवली बन जाने पर समस्त जैन संघ के प्रांचार्य वन गए ।
४- पूज्य श्री स्वयंभव स्वामी
ये वेद, वेदांगों के मर्मज्ञ ब्राह्मण विद्वान थे। एक बार प्रभव स्वामी से इनकी भेंट हो गई। प्रभवाचार्य ने इन्हें द्रव्ययज्ञ श्रीर भावयज्ञ का स्वरूप समझाया । इस से इन को प्रतिबोध हुआ और अन्त में, उन्हीं के चरणों में इन्होंने दीक्षा ग्रहण कर ली। प्रभवस्वामी के अनन्तर इन्होंने प्राचार्यपद संभाला। और बड़ो योग्यता तथा सफलता से संघ का संचालन किया । श्री दशकालिंक सूत्र के निर्माता यही स्वयंभवाचार्य थे ।
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५- पूज्य श्री यशोभद्र, ६- पूज्य श्री सम्भूति-विजय
स्वयंभवाचार्य के अनन्तर श्री यशोभद्र इन के पाट पर विराजमान हुए और इनके बाद श्री सम्भूतिविजय श्राचार्य बने । आपने अपनी विलक्षण और पूर्व प्रतिभा द्वारा संघ की उन्नति की और उस की सर्वोतमुखी व्यवस्था की ।
७- पूज्य श्री भद्रबाहु स्वामी
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आचार्य प्रवर यशोभद्र के पांस आप दीक्षित हुए थे। बड़े प्रतिभाशाली थे आप | आप ने उनकी सेवा में रहकर १४ पूर्वी का अध्ययन किया । आचार्यदेव श्री सम्भूतिविजय जी के अनन्तर आपने प्राचार्यपद संभाला । आप श्रुत- केवली थे ।
एक समय की बात है कि कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा के दिन - महाराज चन्द्रगुप्त ने पोषध किया था । उस समय रात्रि के पिछले भाग में उन्होंने सोलह स्वप्न देखे थे । इन स्वप्नों में एक स्वप्न