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प्रश्नों के उत्तर जाए तो ये दोनों पर्यायवाची शब्द हैं; दोनों एक ही अर्थ के परि- .. चायक हैं। मूर्ति पूजा को आगम-विहित न मानने वाली स्थानकवासी । परम्परा और उसे आगमविहित मानने वाली श्वेताम्बर मन्दिरमार्गी परम्परा दोनों में स्थानक और उपाश्रयः इन शब्दों का व्यवहार चल सकता है । इन दोनों शब्दों में अर्थगत कोई विशेष भेद न होने पर भी सम्प्रदाय-भेद से एक ही भाव के वाचक, दोनों शब्द. आज बंट गए हैं। मूर्ति-पूजा में विश्वास न रखने वाली स्थानकवासी परम्परा में प्रायः स्थानक शब्द प्रसिद्ध है, और मूर्ति-पूजा में विश्वास रखने वाली श्वेताम्बर या पीताम्बर मन्दिरमार्गी परम्परा में उपाश्रय शब्द को अपना लिया गया है। वैसे स्थानकवासी परम्परा में भी उपाश्रय शब्द का आदर पाया जाता है, किन्तु अन्तिम शताब्दियों से इस परम्परा में स्थानक शब्द का ही अधिक प्रयोग मिलता है। ...भावस्थानक-
... . - स्थानक का दूसरा भेद भावस्थानक है। आत्मा की स्वाभा
विक गुण-परिणति या प्रात्मा का निज स्वरूप में रमण करना __भावस्थान कहलाता है । जब आत्मा क्रोध, मान, माया और लोभ
ग्रादि विकारों को जीवन से अलग कर देता है, क्षमा, मृदुता, सरलता और निर्लोभता आदि आत्म-गुणों में रमण करता है। भौतिक
पदार्थों की ममता को छोड़ कर ज्ञान, दर्शन और चारित्र में अपने .. ... को लगा देता है उस समय वह भावस्थानक को प्राप्त कर लेता . .
है। वस्तुतः आत्मा का विभाव को छोड़ कर निज स्वरूप में रमण . . :: करना भावस्थानक है। : ... ... .. . ... ............ .. अध्यात्म जीवन में द्रव्य शुद्धि और भाव शुद्धि दोनों को नि