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प्रश्नों के उत्तर
होता है । जैन - परम्परा में श्वेताम्बर शब्द से जैसे श्वेताम्बर साधु और गृहस्थ दोनों का बोध होता है तथा दिगम्बर शब्द जैसे दिगम्बर साधु और गृहस्थ इन दोनों का परिचायक है, वैसे ही स्थानकवासी शब्द स्थानकवासी साधु और गृहस्थ दोनों का संसूचक है । दूसरे शब्दों में, स्थानकवासी शब्द से त्यागी वर्ग और गृहस्थ वर्ग दोनों का ग्रहण किया जाता है ।"
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प्रश्न–स्थानकवासी समाज को ढूंण्ढक मत भी कहा
जाता है, ढण्ढक शब्द का क्या भाव है ?
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उत्तर-- ढूं ढक शब्द का भी अपना एक गंभीर और मौलिक रहस्य है । यह शब्द लघुता या हीनता को द्योतक नहीं है। इसके पीछे महान दृष्टिकोण रहा हुआ है । इस का अर्थ है- दूण्ढने वाला, खोज करने वाला । जीवन - विकास में खोज का, ग्रन्वेषण और अनुसन्धान का कितना बड़ा मूल्य है ? यह ग्राज के वैज्ञानिक युग में किसी से छुपा हुआ नहीं है । अन्वेषणवृत्ति ने ही ग्राज मनुष्य को पक्षी की तरह आकाश में उड़ादिया है, मछली की भांति समुद्र की छाती पर तरा दिया है । अणु शक्ति और विद्युत् शक्ति यदि अन्य भी अनेक प्रकार की शक्तियों का प्रादुर्भाव अन्वेषण और अनुसन्धान का ही सुपरिणाम है । अनुसन्धान में जीवन है, यदि उसका सदुपयोग हो तो इसी में स्वर्ग है और मुक्ति भी इसी के हाथों में खेलती है 17,
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“जिन खोजा तिन पाइयाँ' की रहस्य - पूर्ण उक्ति दूण्टक शब्द की महत्ता, उपयोगिता और लोक-प्रियता को मुक्त कण्ठ से स्वीकार कर रही है। यह उक्ति सामान्य उक्ति नहीं है । विचार-जगत में इस का महत्त्व-पूर्ण स्थान है । ढुण्ढक (दूण्डिया) शब्द उन लोगों का