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त्रयोदश अध्याय
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पहले का ही ज़माना देखा है । उसे देख कर ही हमने प्राचीन ज़माने को उस के साथ मिलाने का यत्न किया है । किन्तु यह हमारी भूल है। क्योंकि दोनों में अपेक्षाकृत बड़ा अन्तर पाया जाता है । और प्राचीन समय की बातें आज आश्चर्य से देखी जाती हैं । जैसे कुछ शताव्दियां पहले योद्धा लोग दो मन भारी लोहे का कवच पहन कर युद्ध करने जाते थे । हम्मीर- टीपू सुलतान आदि वीर पुरुष मनों भरी वज़न की गदा, तलवार आदि को हाथ में लेकर लड़ा करते थे । भीमसेन युद्ध में हाथियों को उठा उठा कर फेंक दिया करते थे । अभी ३०-४० वर्ष पहले लाहौर जिले में चग्रा गांव का रहने वाला हीरासिंह नामक पहलवान २७ मन भारी मुदगर घुमाता था और इसी जिले के बलटोहे गांव का रहने वाला फत्तेसिंह नामक सिक्ख १.०० मन तक भारी रहट ( रेंट) को उठा लेता था । राममूर्ति चलती गाड़ी को रोकने का साहस रखता था । इस प्रकार . के अन्य अनेकों उदाहरण दिए जा सकते हैं, इन सब पर यदि हम ग्राजकल के नाजुक, निर्वल शरीरों को देख कर विचार करें तो ये सब प्रसंभव सी बातें मालूम पड़ेगी, किन्तु हैं सब की सव सत्य ! अतः हमें वर्तमान काल को अतीत काल के साथ मिलाने का यत्न नहीं करना चाहिए ।
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प्रकृति का यह अटल सिद्धान्त है कि भूमि यदि बलवान है, अधिक रस वाली है तो उस में उत्पन्न हुई वनस्पति में भी अधिक रस और बल होता है । उस सवल वनस्पति का जो सेवन करते हैं वे मनुष्य भी अधिक बली होते हैं, उनके शरीर में वीर्य भी अधिक होता है, जिस मनुष्य में वीर्य अधिक होता है उसकी सन्तति भी अधिक वलवान और क़दावर (विशाल शरीर वाली) होती है ।