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प्रयोदश अध्याय mmmmmmmmmmmi · शक्ति का अभाव है, शक्ति-हीनता.या निर्वलता के कारण ही" 'आजकल मनुष्य प्रायः ४०-५० वर्ष तक कठिनता से पहुंच पाते हैं, जब कि कुछ समय पहले मनुष्य प्रायः ६० या १०० वर्ष के हो : कर ही मरते. थे। इस से सिद्ध होता है कि प्राचीन काल में आयु का प्रमाण भी आजकल की अपेक्षा बहुत अधिक था, जो शरीर की ऊंचाई तथा बल के साथ-साथ वरावर दिनों-दिन घटता चला
आया है, और घटता ही चला आ रहा है । जैसे अवसर्पिणी काल ' या कलियुग के प्रभाव से शारीरिक. अवगाहना कम हो गई है।
और होती जा रही है, वैसे ही प्राणियों की आयु भी अवसर्पिणी या कलियुग के प्रभाव से थोड़ी रह गई है और हीनता की ओर बढ़ रही है। काल का प्रभाव प्रत्येक पदार्थ पर पड़ता है । इस सत्य से कभी इन्कार नहीं किया जा सकता । उदाहरणार्थ-सत्ययुग में मनुष्यों का वल, बुद्धि, विचार, तथा रहन-सहन जिस प्रकार का
था, आज उस में बहुत अन्तर आ गया है। आज. वे..सव बातें .केवल शास्त्रों की बातें या स्वप्न वन गई हैं । आज उस युग जैसी - , सात्त्विकता देखने को भी तसीव नहीं होती । यही स्थिति आयु की
है। आयु भी समय के प्रभाव से अछूती नहीं रही है। अवसर्पिणी काल या कलियुग के भीषण प्रहारों ने आयु की लम्बाई को भी "समाप्त कर दिया है। ... .. . .... . ..
तीर्थंकरों की महान आयु सुनकर हमें आश्चर्य होता है, और वह हमें असंभव और असंगत सी प्रतीत होती है, किन्तु वात इतनी विस्मयजनक नहीं है, जितनी आज हम ने समझ रखी है। क्योंकि
काल: के प्रहार बड़े जवरदस्त होते हैं.। समय के चक्र को. समझ ... समय (काल) के विभागों का वर्णन प्रस्तुत के 'लोफ-स्वरूप” नामकः .
- अध्याय में किया गया है । पाठक उसे देखने का कष्ट करें।