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प्रश्नों के उत्तर लेने पर कुछ भी विस्मयजनक नहीं रहने पाता। __ . "प्राचीन कालीन महापुरुषों की आयु महान होती थी" यह
मान्यता केवल जैन-दर्शन की ही नहीं है । वैदिक परम्परा भी ऐसा ही मानती है। उदाहरणार्थ, मनुस्मति की टीका में मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम की प्रायु दस हजार वर्ष की लिखी हैं। सम्वत् १६४६ में विरजानन्द प्रेस से लाहौर में प्रकाशित व्यासकृत भाष्यसहित योग-दर्शन पृष्ठ. ६१-६२ पर "गुवनज्ञानं सूर्य संयमात्" २६। इस सूत्र के भाग्य में लिखा है- .. .
ततः प्रस्तारः सप्त लोका......अणिमाद्यैश्वर्योपपन्ना कल्पायपो. वृन्दारकाः कामभोगिनः श्रीपपादिकदेहा उत्तमानुकलाभिरप्सरोभिः कतपरिवाराः। एते...महाभूतवंशिनो ध्यानाहाराः कल्पसहस्रायपः इत्यादि। ..
. अर्थात्-सात लोक हैं ।......अणिमा, महिमा आदि ऋद्धियों से ... सहित, यथेच्छभोगी, सुन्दरीप्रिय, अप्सराओं के परिवार वाले, . औपपादिक शरीरधारी देव होते हैं। उनकी आयु (उम्र) कल्प के बरावर होती है।......ये देव महाभूतों को वश करने वाले, ध्यान - मात्र से आहार करने वाले (विचार करते ही जिन को भोजन मिल .. जावे, भूख मिट जावे) हज़ार कल्प की आयु वाले होते हैं।' .... .. -- .... देव-तर्पण प्रकरण में सत्यार्थ-प्रकाश के . १०१वें पृष्ठ पर ... स्वामी दयानन्द जी ने शतपथ ब्राह्मण का "विद्वांसो हि देवाः" यह प्रमाण देकर विद्वान मनुष्यों को ही देव वतलाया है। इस .. - कारण स्वामी दयानन्द जी के कथनानुसार योगदर्शन के प्रमाण से ..
यह सिद्ध हो जाता है कि विद्वान पुरुषों की आयु हजार कल्पों की · होती है। एक कल्प हजारों वर्षों का होता है । इसलिए योगदर्शन
के लिखे अनुसार कभी कहीं मनुष्यों की आयु लाखों वर्षों की भी