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प्रश्नों के उत्तर
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~im. कोई दुष्ट है। जन्म से न कोई ब्राह्मण है, न कोई क्षत्रिय है। जन्म .. से कोई वैश्य या शूद्र भी नहीं कहा जा सकता । ब्राह्मण प्रादि : बनने के लिए ब्राह्मण के योग्य कर्मों का पांचरण करना अपेक्षित . होता है । इसी प्रकार उच्चता प्राप्त करने के लिए उच्च कर्मों के : सम्पादन की आवश्यकता रहती है। उच्चता की प्राप्ति के लिए.. किसी वर्ण या वर्ग का कोई वन्धन नहीं है। उच्च विचारों वाला : प्रत्येक व्यक्ति उच्चता के सिंहासन पर बैठ सकता है। भगवान । महावीर का यह विश्वास केवल विश्वास ही नहीं था, किन्तु हरिकेशीवल जैसे चण्डाल-पुत्रों को अपने भिक्षु-संघ में सम्मान-पूर्वक सम्मिलित कर के भगवान ने जो कुछ कहा,वह करके भी दिखाया।
और पोलासपुर में सद्दाल कुम्हार के यहां रह कर भगवान ने पति- . . तपावनता तथा दोन-बन्धुता का उज्ज्वल प्रादर्श उपस्थित किया। आगम-साहित्य में एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलता, जहां भग- . वान किसी राजा, महाराजा अथवा ब्राह्मण या क्षत्रिय के महलों विराजमान रहे हों। राजपुत्र होकर भी साधारण स्थानों में निवास करना; यह प्रभुवीर के त्याग तथा पतितपावनता..का : ज्वलन्त उदाहरण है। .. . .. ... . .. . भगवान महावीर के सामने तीसरी समस्या यज्ञबाद की थी।
उस समय का समाज यज्ञ में पशुओं और मनुष्यों की वलि दिया .. करता था। उसका विश्वास था कि यज्ञ करने से स्वर्ग की प्राप्ति : होती है, औराजोवन के समस्त दुःखे दूर हो जाते हैं । . अश्वमेध,
गोमेध और नर-मेध उस युग के विशेष लब्ध-प्रतिष्ठ यज्ञ माने जाते . . थे । इन यज्ञों में जीवित घोड़ों,गौत्रों और मनुष्यों को यज्ञ कुण्ड में... .. आज भी काली देवी आदि देवियों के मन्दिरों में भैसों, बकरों,
तथा सूअरों की जो वलियां दी जाती हैं, यह सब महावीर-काल में जो...... ' यज्ञ चल रहे थे, उन्हीं के ध्वंसावशेष हैं।