________________
.
.
त्रयोदश अध्याय . .
.
...
I
.
.
.
..
और नागिन का जलता हुआ जोड़ा निकला। तापस अत्यधिक लजित हुए। इधर कुमार ने उन्हें मरणासन्न जान कर उनके कान में महामंत्र नवकार का मंगलमय पाठ सुनाया। महामंत्र की पवित्र ध्वनि सुनकर नाग और नागिन का दाह--सन्ताप कुछ शान्त हुया और अन्त में, जीवन-समाति हो जाने पर वे स्वर्गपुरी में धरणेन्द्र और पद्मावती नाम के देव, देवी वने। ... नाग-नागिन की दुःखद घटना से राज--कुमार पार्श्वनाथ को. मार्मिक वेदना हुई। साथ में तापसों के इस अज्ञान कष्ट को देखकर उन्हें उन पर दया भी आई। उन्होंने निश्चय किया कि मैं इन्हें । सत्पथ दिखलाऊंगा और ज्ञान-पूर्वक तप करने का सुबोध देकर इन के जीवन का सुधार करूंगा। अन्त में, कांशी देश के विशाल तथा समृद्ध साम्राज्य को ठुकराकर राजकुमार पार्वनाथ मुनि बन गए और उन्होंने सत्य अहिंसा की इतनी “उग्र साधना की जिसे सुन कर वज्र-हृदय व्यक्ति भी कम्पित हुए बिना नहीं रह सकता।..
सहनशीलता के तो मानों आप स्रोत थे । भयंकर से भयंकर संकट में भी आप कभी विचलित नहीं हुए। एक बार की बात है कि आप ध्यानस्थ खड़े थे । कमठासुर ने आप को लोम-हर्षक कष्ट दिए । उसने मूसलाधार वर्षा की। पृथ्वी पर चारों ओर .. पानी ही पानी कर दिया। पानी आप के नाक तक आ गया था।
आप डूबने ही वाले थे कि ऐसे घोर उपसर्ग के समय धरणेन्द्र और पद्मावती ने आप का उपसर्ग दूर किया। पद्मावती ने अपने मुकुट . ~~
जिस तपस्वी के लक्कड़ को श्राप ने कुमारावस्था में फाड़ा था,उस . . का नाम कमठ था और वह मर कर असुर जाति में पैदा हो गया था । . . .' कमठासुर उसी तपस्वी के जीव का नाम है। ....... ..... ..
..
...
.
t
..
.