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प्रश्नों के उत्तर
के ऊपर आप को उठा लिया और धरणेन्द्र ने सहस्र फरण वाले सर्प का रूप धारण करके ग्राप के ऊपर अपना फण फैला दिया । कमठासुर आप को मारणान्तिक कष्ट देना चाहता था, तथापि आपने उस पर किञ्चित् रोष नहीं किया, प्रत्युत आप उस पर अन्तर्-हृदय से दया की हो वर्षा करते रहे ।
देवकृत, मनुष्यकृत इस प्रकार अनेकविध उपसर्गों को शान्ति ..के साथसहन करके भगवान पार्श्वनाथ ने ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, माहनीय र अन्तराय इन चार घातिक कर्मों को क्षय करके केवल-ज्ञान को उपलब्ध किया । केवल-ज्ञान प्राप्त करने के अनन्तर करीब ७० वर्ष सर्वत्र विचार कर के भगवा । ने धर्म का उपदेश दिया । ज्ञान - पूर्वक किए गए तप का संसार को महत्व समझाया । घर–घर ग्रहिंसा और सत्य के पुनीत दीप जगाकर मानव जगत के अज्ञान अन्धकार को दूर किया । भगवान ने संसार को चार * महाव्रतों का उपदेश दिया था और चतुविध संघ की स्थापना की थी ।.
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भगवान पार्श्वनाथ ने जन-कल्याण के लिए क्या किया ? इस सम्बन्ध में में अपनी ओर से कुछ न लिखकर सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्वान श्री धर्मानन्द कौशाम्बी के लेख का कुछ अंश प्रस्तुत किए देता हूँ,उससे भगवान के क्रान्तिकारी धार्मिक आन्दोलन की कुछ झाँकी
★ अहिंसा, सत्य, अचौर्य और अपरिग्रह, ये चार महाव्रत भगवान पार्श्वनाथ ने माने थे । ब्रह्मचयं महाव्रत को उन्होंने अपरिग्रह में ही संकलित कर लिया था । स्त्री को वे परिग्रह मानते थे । किन्तु भगवान महा-वीर ने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार ब्रह्मचर्य महाव्रत को स्वतंत्र महाव्रत मानकर महाव्रतों की संख्या पांच कर दी थी !
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