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प्रश्नों के उत्तर
थूक का नाम भी गिनाया जाता या उत्पत्ति - स्थानों की संख्या भी बढ़ा दी जाती । परन्तु ऐसा नहीं होने से यह स्पष्ट है कि थूक से संमूच्छिम जीवों की उत्पत्ति नहीं होती । उक्त स्थानों में भी अन्तमुहुर्त के वाद ही संमूच्छिम जीवों की उत्पत्ति होती है, पहले नहीं । : यदि थूक से संमूच्छिम जीवों की उत्पत्ति मानी जाए तो मुखवस्त्रिका को हाथ में रखने वाले भी उस हिंसा से बच नहीं सकेंगे । क्योंकि व्याख्यानादि प्रसंगों पर वे भी बोलते समय मुंह पर रखते हैं और उस समय वोलने से वह भी थूक से भीग जाती हैं, अतः उस समय उसमें संमूच्छिम जीवों की उत्पत्ति हो जाएगी । यदि यह कहा जाय कि हाथ में रखने से उसे सुखाया या धोया जा सकता है, इससे वह ज्यादा गंदी नहीं होने पाती । यह बात वांधने पर भी की जा सकती है, उसे बदलने एवं धोकर साफ रखने की पद्धति स्थानकवासी एवं तेरह-पंथी परम्परा में भी है। अतः .. थूक में संमूच्छिम जीवों की उत्पत्ति मानना श्रागम एवं सिद्धान्त से विरुद्ध है और ऐसे मान लिया जाए तो फिर मुखस्त्रिका रखने का सिद्धान्त ही गलत हो जाएगा । अतः इस तर्क में ज़रा भी सत्यता नहीं है कि थूक से संमूच्छिम जीवों की उत्पत्ति होती है । प्रश्न - मुखवस्त्रिका कितनी लम्बी-चौड़ी हो ? . उत्तर—— मूल आगम में तो इसका विधान देखने में नहीं आया । परन्तु, ग्रावश्यक चूरिंग में इस सम्बन्ध में लिखा है कि मुखवस्त्रिका २१ अंगुल लम्बे, १६ अंगुल चौड़े वस्त्र की चतुष्कोण होनी चाहिए और इसकी ग्राठ तहें बनानी चाहिए ।x
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x एगवी सांगुळायामा, सोलसगुलवित्थिणा चक्कार संजयाय, मुहपोत्तिया एरिसा होइ ।
- आवश्यक चूर्णि
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