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त्रयोदश अध्याय
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कृष्णा चतुर्दशी और निर्वाण चैत्र शुक्ला पंचमी को हुआ । आप की निर्वाण - भूमि सम्मेतशिखर है । ग्राप विवाहित थे, ग्राम साढ़े २२ लाख वर्ष गृहस्थाश्रम में रहे और साढ़े सात लाख वर्ष तक प्राप ने संयम का पालन किया । अन्त में, ७०० मुनियों के साथ आपने मुक्ति को प्राप्त किया ।
भगवान धर्मनाथ जी -
की जन्म-भूमि
आप जैन-धर्म के पन्द्रहवें तीर्थंकर हैं । ग्राप रत्नपुर नामक नगरी थी । महाराज भानु ग्राप के पिता थे । आप की माता का नाम सुव्रता था । आप का जन्म माघ शुक्ला तृतीया को, दीक्षा माघ शुक्ला त्रयोदशी को केवल - ज्ञान पौष शुक्ला पूरिंगमा, और निर्वाण ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को हुआ । ग्राप की निर्वारण - भूमि सम्मेतशिखर है । ग्रापं विवाहित थे, आप लाख वर्ष गृहवास में, रहे और ग्राप ने एक लाख वर्ष संयम का पालन किया । अन्त में, ८०० साधुत्रों के साथ ग्राप मुक्ति में पधारे ।
भगवान शान्तिनाथ जी -
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जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ जी हैं। आप का पवित्र जन्म हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन की श्रचिरा रानी से हुआ था । आप का जन्म ज्येष्ठ कृष्णा त्रयोदशी को, दीक्षा ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी को और केवल - ज्ञान पौष शुक्ला नवमी को हुआ । तथा निर्वाण जन्म की तिथि को हो हुआ था । आप की निर्वाणभूमि सम्मेतशिखर है । आप भारत के पंचम चक्रवर्ती राजा भी थे | आप के जन्म लेने पर देश में फैले हुए भयंकर मृगी रोग की महामारी शान्त हो गई थी । इसलिए ग्राप का नाम श्री शान्तिनाथ रखा गया था । आप बहुत ही दयालु प्रकृति के थे । पहले जन्म में
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