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त्रयोदश अध्यायः
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पालन किया । अन्त में, एक हजार साधुओं के साथ आप ने निर्वारण पंद पाया ।
भगवान शीतलनाथ जी -
याप दशवें तीर्थंकर हैं। आप की जन्म भूमि भद्दिलपुर नगरी थी। पिता दृढरथे राजा और माता का नाम नन्दारानी था । आप का जन्म माघ कृष्णा द्वादशी को, दीक्षा मार्गशीर्ष कृष्णा द्वादशी को, केवल - ज्ञान पौष कृष्णा चतुर्दशी और निर्वाण वैशाख कृष्णा द्वितीया को हुआ था । आप की निर्वारण-भूमि सम्मेतशिखर है । ग्रापं विवाहित थे । आप ने पोन लाख पूर्व गृहवास किया और पाव लाख पूर्व तक संयम की पालना की । अन्त में, एक हज़ार मुनियों के साथ आपने मुक्ति को प्राप्त किया ।
भगवान श्रेयांसनाथ जी -
आप जैन-धर्म के ग्यारहवें तीर्थंकर हैं । आप को जन्म भूमि सिंह-पुर नगरी थी। पिता का नाम विष्णुसेन राजा, और माता का नाम विष्णु देवी था । आप का जन्म फाल्गुण कृष्णा द्वादशी को, दीक्षा फाल्गुण कृष्णा त्रयोदशी को, केवल-ज्ञान माघ शुक्ला द्वितीया और निर्वाण श्रावरण कृष्णा तृतीया को हुआ । ग्राप की निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है । भगवान महावीर के जीव ने पूर्वजन्म में त्रिपृष्ठ वासुदेव के रूप में भगवान श्रेयांसनाथ के चरणों में बैठ कर अहिंसा, संयम और तप का मंगलमय उपदेश सुना था । भगवान श्रेयांसनाथ विवाहित थे । आप ६३ लाख पूर्व गृहस्यावस्था में रहे और २१ लाख पूर्व तक आप ने संयम का पालन किया । ग्रन्त में, एक हजार साधुयों के साथ ग्राप निर्वारण को प्राप्त हुए ।