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- त्रयोदश अध्याय .....६२५
mmmmmmwwwwwwwwwrai २१ हजार वर्ष आप ने संयम का पालन किया तथा एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष में पधारे । - ... भगवान मल्लिनाथ जी- ... . . . . . .
आप जैन धर्म के उन्नीसवें तीर्थकर हैं । आप का जन्म स्थान . मिथिला नगरी थी । आप के पिता महाराज कुभ थे और माता का नाम श्री प्रभावती देवी था। आप का जन्म मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को,दीक्षा मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को,केवल-ज्ञानx मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी, और निवारण फाल्गुण शुक्ला द्वादशी को हुआ। . आप की निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर थी । वर्तमान काल के चौबीस तीर्थंकरों में आप स्त्री तीर्थंकर थे। अाप ने विवाह नहीं कराया । आप जीवन-पर्यन्तं ब्रह्मचारी रहे । अाप ने छ राजाओं को भी संयम-मार्ग में लगाया था। आप के जीवन-चरित्र में इस . सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा है-: ... .. .. . . __ मल्लिकुमारी जी जव युवावस्था में पाए तव आप के सौन्दयाधिक्य से मोहित होकर ६ राजाओं ने आप से विवाह करने के . लिए आप के पिता महाराज कुम्भ के पास अपने-अपने दूत भेजे। . . एक कन्या के लिए छः राजाओं की मांगणी देख कर कुम्भ राजा.. को क्रोध आ गया। उन्होंने दूतों को अपमानित करके अपने नगर सेः बाहिर निकाल दिया । अपमानित दूतों ने सारा वृत्तान्त अपनेअपने राजा से कहा। इस से छहों राजा कुपित हो गए और अपनीअपनी सेना सजा कर राजा कुम्भ के ऊपर चढ़ाई कर दी। इस वृत्तान्त को सुनकर राजा कुंभ घवराया । तव मल्लिकुमारी ने अप- .....
..:: भगवान: मल्लिनाथः जी को दीक्षा लेने के अनन्तर दूसरे पहरे में ही केवल-ज्ञान प्राप्त हो गया था। . .... ..... .. ...
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