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द्वादश अध्याय
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प्रश्न- क्या रजोहरण सदा साथ रखना होता हैं या आवश्यकता पड़ने पर ?
उत्तर - हम यह देख चुके हैं कि मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण जीवों की रक्षा के लिए है, हिंसा से बचने के लिए है । साधु पूर्णतः हिंसा का त्यागी होता है । अतः उसके पूर्ण अहिंसक होने के चिन्ह भी हैं और हिंसा से बचने के साधन भी । इसलिए मुखवस्त्रिका की तरह इसे भी सदा साथ रखना जरूरी है । पता नहीं किस समय इसके उपयोग की ग्रावश्यकता पड़ जाए । इसी कारण निशीथसूत्र में यह विधान किया गया कि साधु रजोहरण को छोड़कर अपने शरीर प्रमाण ( साढ़े तीन साथ) भू-भाग से आगे न जाए । यदि विस्मृति से इस मर्यादा का उलंघन कर जाए तो उसके लिए एक उपवास का प्रायश्चित्त बताया है । यह प्रायश्चित्त किसी जीव की हिंसा हो गई इसलिए नहीं है । यह प्रायश्चित्त प्रमाद एवं विस्मृति से दोष से बचकर ग्रागे के लिए सदा सावधान रहने के लिए है ।
प्रश्न- रात को रजोहरण बराबर साथ रखने की बात तो समझ में आ सके, वैसी है, परन्तु दिन में जबकि सूर्य के प्रखर प्रकाश में मार्ग साफ-साफ दिखाई दे रहा है, ऐसी स्थिति में भी रजोहरण का बोझ उठाए उठाए फिरना क्या उचित प्रतीत होता है ?.
उत्तर — इसके लिए जरा चिन्तन को गहराई में ले जाने की श्रावश्यकता है । यह सत्य है कि सूर्य के उजेले में हम फली-भाँति जीवों का ग्रवलोकन कर सकते हैं । इसलिए रात को जैसे रजोहरण से भूभाग को साफ करते हुए गति करते हैं, वैसे ही दिन में
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