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प्रश्नों के उत्तर
था ? जन्मगत जाति का उस समय कोई ग्रादर या महत्त्व नहीं था । श्रागे चलकर वैदिक धर्म का जब महत्त्व वढ़ा तो कर्मरणा वर्ग के स्थान पर जन्मना वर्ण के सिद्धान्त को प्रतिष्ठा मिल गई । ग्राज के ये ऊंच-नीच के भेद-भाव उसी वैदिक युग की देन है ।
१८.
भगवान ऋषभदेव के दो पत्नियां थीं— सुमंगला ग्रौर सुनंदा । इन से इन के सौ पुत्र और ब्राह्मी, सुन्दरी ये दो पुत्रियां पैदा हुईं। बड़े पुत्र का नाम भरत था । श्रीर इनसे छोटे का नाम बाहुबली था । भरत सुमंगला के और बाहुबली सुनंदा के पुत्र भरत परम प्रतापी राजा हुए हैं। ये बड़े ही प्रतिभाशाली और सुयोग्य शासक थे । यही भरत इस युग में भारत वर्ष के प्रथम चक्रवर्ती बने थे । बाहुबली भी अपने युगं में माने हुए शूरवीर और योद्धा थे । इन का शारीरिक वल उस समय अद्वितीय समझा था। बड़ी ही स्वतंत्र प्रकृति के व्यक्ति थे । चक्रवर्ती भरत ने इन्हें अपने अधीन रखना चाहा था । पर इन्होंने निर्भयता - पूर्वक उन के अधीन रहने से इन्कार कर दिया । ये भरत का बड़े भाई के रूप में तो आदर करते थे, किन्तु शासक के रूप में उन्हें मानना, यह इनके लिए प्रसह्य था । अन्त में दोनों का युद्ध होता है । युद्ध में भरत को नीचा देखना पड़ा था । किन्तु "राज्य के निस्सार लोभ, में आकर भाई, भाई का हत्यारा बनने को भी तैयार हो जाता है, ऐसा राज्य रख कर मुझे क्या करना है ?" इस सद्-विचाररणा से बाहुबली को वैराग्य हो जाता है, और वे जैन मुनि बन कर ग्रात्मकल्याण करते हैं ।
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थे ।
ब्राह्मी, सुन्दरी बहुत ही बुद्धिमति और चतुर कन्याएं थीं, भगवान ऋषभदेव ने अपने दोनों पुत्रियों को बहुत ऊंचा शिक्षण दिया था । ब्राह्मी ने लिपि अर्थात् अक्षरज्ञान, व्याकरण, छन्द,