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प्रश्नों के उत्तर
भी उत्सव के रूप में मनाया जाता है ।
भगवान ऋषभदेव महान तपस्वी थे । तपस्या की चरम दशा ने इनके जीवन में साकार रूप धारण कर लिया था। इस तरह तप करते हुए भगवान ऋषभदेव जव श्राध्यात्मिकता की उच्चकोटि अवस्था को प्राप्त हुए तब इन्होंने 'ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय यदि चार घातिक कर्म क्षय करके वटवृक्ष के नीचे केवल ज्ञान को उपलब्ध किया । भगवान ने केवल - ज्ञान पाकर जनता को धर्मोपदेश दिया । गृहस्थ और साधु दोनों को ही उन्होंने धर्म का मार्ग बतलाया । तदनन्तर भगवान ऋषभदेव ने साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका इस चतुविध संघ की स्थापना की । भंगबान के पहले गणधर भरत महाराज के सुपुत्र श्री ऋषभसेन जो थे । और सब से पहली आर्यकाएं प्रभु की अपनी दोनों पुत्रियां ब्राह्मी और सुन्दरी हुई ।
भगवान ऋषभदेव का जन्म युगलियों में युग में चैत्र कृष्णा अष्टमी को हुआ था । उस समय मनुष्य वृक्षों के नीचे रहते थे. और वनफल खाकर जीवन बिताया करते थे, पिता का नाम नाभि राजा और माता का नाम मरुदेवी था । उनकी राजधानी. अयोध्या नगरी थी तथा भरत आदि १०० पुत्र थे । आप ने युवावस्था में ग्रार्य सभ्यता की नींव डाली। पुरुषों को वहत्तर और स्त्रियों को चौंसठ कलाएं सिखाई थीं । आप ने युगलिया + धर्म समाप्त करके दो राजकुमारियों के साथ विवाह किया और विवाह पद्धति का प्रादुर्भाव किया । ८३ लाख वर्ष पूर्व राज्य करके आप ने भरत
* बहिन- भाई का एक साथ पैदा होना और बड़े होकर उन दोनों. का पति-पत्नी के रूप में परिवर्तित हो जाने का नाम युगल - धर्म है ।