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.: त्रयोदश अध्याय
mim स्थिरता आहार पर निर्भर है । आहार के अभाव में वह लड़ाखड़ा जाता है । यही कारण है कि वेचारे चार हजार साधक पथ-भ्रष्ट .. हो चुके हैं । अतः पाने वाले साधकों का मार्ग-दर्शन करने के लिए मुझे आहार लेना ही चाहिए। इस विचारणा के कारण पाहार के लिए नगर में प्रवेश किया। उस समय की जनता साधुओं को .. साधु-योग्य आहार देना नहीं जानती थी। अत. भगवान को मुनिवृत्ति के अनुसार निर्दोष भिक्षा न मिल सकी । सदोष आहार लेने से भगवान ने स्वयं इन्कार कर दिया था। बहुत से लोग भगवान की . सेवा में हाथी, घोड़े लेकर आते थे, बहुत से रत्नों के थाल ही भर कर भगवान को भेंट देने आते थे। पर यह सद कुछ तो भगवान स्वयं त्याग कर पाए थे । अन्त में, भगवान हस्तिनापुर पहुंचे। वहां के राजकुमार श्रेयांस ने अपने पूर्व-जन्म-सम्बन्धी जातिस्मरण ज्ञान से जानकर भगवान को निर्दोष आहार, ईख का रस ' वहराया । वह संसार-त्यागी मुनियों को आहार देने का पहला . . दिन था । वैशाख शुक्ला, अक्षयतृतीया के रूप से यह दिन आज :
राजकुमार श्रेयांस भगवान के पुत्र बाहुबली का पौत्र था । कुमार - अपने सतमंज़िले महल की खिड़की में बैठा था। उस ने राजपथ पर भगवान -
को देखा । देखते ही उसे जांति-स्मरण ज्ञान हो गया। जाति-स्मरण मति· ज्ञान का एक भेद है, इस से पिछले जन्मों का बोध प्राप्त हो जाता है। .
श्रेयांस ने इस से पिछले आठ भव जान लिए थे। इसी ज्ञान के प्रभाव से .. इसे दान-विधि का भी ज्ञान प्राप्त हो गया था। इसीलिए उस ने मुनियोग्य शुद्ध निर्दोष आहार भगवान को वहराया। .. . . ... "अक्षयतृतीया' का समस्त विवरण प्रस्तुत पुस्तक के "जैन-पर्व" नामक अध्याय में दिया गया है । पाठक उसे देखें । .
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