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प्रश्नों के उत्तर
पृष्ठ है । उसमें प्रमाद, गफलत एवं अविवेक को ज़रा भी स्थान नहीं है। उसकी प्रत्येक क्रिया विवेक एवं यतना पूर्वक होती है और वह अपने उपकरण या साधनों का उपयोग भी जीवों की । सुरक्षा एवं संयम-पालन के लिए करता है। अतः आवश्यकतानुसार रखे गए उपकरण उसकी साधना में बाधक नहीं प्रत्युत सहायक ही होते हैं। हम यह पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि साधना के पथ पर गतिशील साधक को थोड़े-बहुत उपकरण ग्रहण करने ही होते हैं । संसार में ऐसा कोई भी साधु नहीं था
और न वर्तमान में है, जो बाह्य उपकरणों के बिना संयम साधना . साध सका हो या साध रहा हो । अस्तु, निर्मम भाव से वस्त्र पात्र . रजोहरण : आदि उपकरण रखना परिग्रह नहीं है। . . . . . .