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________________ ५६६ प्रश्नों के उत्तर पृष्ठ है । उसमें प्रमाद, गफलत एवं अविवेक को ज़रा भी स्थान नहीं है। उसकी प्रत्येक क्रिया विवेक एवं यतना पूर्वक होती है और वह अपने उपकरण या साधनों का उपयोग भी जीवों की । सुरक्षा एवं संयम-पालन के लिए करता है। अतः आवश्यकतानुसार रखे गए उपकरण उसकी साधना में बाधक नहीं प्रत्युत सहायक ही होते हैं। हम यह पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि साधना के पथ पर गतिशील साधक को थोड़े-बहुत उपकरण ग्रहण करने ही होते हैं । संसार में ऐसा कोई भी साधु नहीं था और न वर्तमान में है, जो बाह्य उपकरणों के बिना संयम साधना . साध सका हो या साध रहा हो । अस्तु, निर्मम भाव से वस्त्र पात्र . रजोहरण : आदि उपकरण रखना परिग्रह नहीं है। . . . . . .
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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