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________________ - चौबीस तीर्थंकर त्रयोदश अध्याय प्रश्न-तीर्थकर किसे कहते हैं ? उत्तर-तीर्थ तैरने के साधन को कहते हैं । संसार सागर से तैरने के साधनों का जो उपदेश करता है, सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र इन त्रिविध मुक्ति-मार्ग के साधनों का संसार में प्रसार करता है उसको तीर्थंकर कहते हैं। तीर्थ शब्द .. का अर्थ धर्म भी होता है। इसलिए जैनशास्त्रों में अहिंसा, सत्य; ब्रह्मचर्य आदि धर्मों को भी तीर्थ का रूप दिया गया है। वैष्णवों . __के स्कन्ध-पुराण, काशी खण्ड, अध्याय ६ में कहा है-- .. सत्यं तीर्थ, क्षमा तीर्थ, तीर्थमिन्द्रियनिग्रहः । सर्वभूतदया. तीर्थ, तीर्थमार्जमेव च ॥ . . दानं तीर्थं, दमस्तीर्थ, सन्तोषस्तीर्थमुच्यते । .. ब्रह्मचर्य परं तीर्थं, तीर्थं च प्रियवादिता ।। ज्ञानं तीर्थ, धृतिस्तीर्थ, तपस्तोर्थमुदाहृतम् । - तीर्थानामपि तत्तीर्थ, विशुद्धिर्मनसः परा ।। .. - अर्थात्-सत्य, क्षमा, इन्द्रियदमन, जीवदया, सरलता, दान,दम, सन्तोष, ब्रह्मचर्य, प्रियवादिता, ज्ञान, धृति और तपस्या तीर्थ हैं । तथा सव तीर्थों में श्रेष्ठ तीर्थ है-मन की शुद्धि । यहां मन की शुद्धि ही श्रेष्ठ तीर्थ माना गया है और मनः
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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