________________
त्रयोदश अध्याय
६०५
यदि
उन्होंने कह दिया कि प्रत्येक कालचक्र में २४ तीर्थंकर होते हैं । उन के ज्ञान में तीर्थंकर क्रम ज्यादा होते तो वे कम ज्यादा कह देते । परन्तु कम ज्यादा तीर्थंकर उन्होंने अपने ज्ञान में नहीं देखे, इसलिए उन्होंने कम ज्यादा न बताकर २४ ही तीर्थंकर बतलाए हैं ।
तीर्थंकर २४ ही होते हैं, कम ज्यादा नहीं: यह प्राकृतिक नियम है । प्रकृति के नियम या स्वभाव में मनुष्य का कोई दखल नहीं हो सकता । वह तो अपने ढंग से पूर्ण होकर ही रहता है । यदि कोई कहे कि ग्राग उष्ण क्यों होती है ? तो आप इस का क्या उत्तर देंगे ? यही न कि यह उस का स्वभाव है ? धूयां ऊपर की प्रोर ही क्यों जाता है ? नीचे की ओर क्यों नहीं जाता ? इस का समाधान भी यही करना होगा कि यह उसका स्वभाव है । ऐसे ही प्रकृति - स्वभाव के अनुसार प्रतीत कालचक्र में २४ तीर्थंकर हुए हैं और अनागत कालचक्र में भी २४ तीर्थंकर होंगे । इसीलिए कहा गया है कि प्रत्येक कालचक्र में तीर्थंकर २४ होते हैं ।
प्रश्न- २४ तीर्थ कर कौन-कौन से हैं ? उन के नाम
बताएं ?
*
उत्तर- २४ तीर्थंकरों के शुभ नाम निम्नोक्त हैं:
१. श्री ऋषभदेव जी (आदिनाथ जी ) अजितनाथ जी, संभवनाथ जी,
'२.०' ..
३. .,,
४. अभिनन्दननाथ जी,
29:
५..,, सुमतिनाथ जी, ६. पद्मप्रभ जी, सुपार्श्वनाथ जी,
७.
11
"
V
८. श्री चन्द्रप्रभ जी,
ε. सुविधि नाथ जी, शीतलनाथ जी,
१०. ”
- ११. "
श्रेयांसनाथ जी,
१.२.,, वासुपूज्य जी,
१३. . विमलनाथ जी, १४ . ., अनन्तनाथ जी,
97